काव्य: Difference between revisions
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< | <span class="HindiText"> कवि का भाव अथवा कर्म काव्य कहलाता है । धर्म-तत्त्व का प्रतिपादन ही काव्य का प्रयोजन है । काव्य में अनुकरण और मौलिकता का सुंदर समन्वय होता है विशाल शब्दराशि, स्वाधीन अर्थ, संवेद्य रस, उत्तमोत्तम छंद और सहज प्रतिभा तथा उदारता काव्य-रचना के सहायक तत्त्व हैं । प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यास काव्य-सूजन के हेतु हैं । काव्यगत सौंदर्य शैली पर निर्भर करता है । <span class="GRef"> महापुराण 1. 62-111 </span> | ||
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Latest revision as of 13:58, 10 February 2024
कवि का भाव अथवा कर्म काव्य कहलाता है । धर्म-तत्त्व का प्रतिपादन ही काव्य का प्रयोजन है । काव्य में अनुकरण और मौलिकता का सुंदर समन्वय होता है विशाल शब्दराशि, स्वाधीन अर्थ, संवेद्य रस, उत्तमोत्तम छंद और सहज प्रतिभा तथा उदारता काव्य-रचना के सहायक तत्त्व हैं । प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यास काव्य-सूजन के हेतु हैं । काव्यगत सौंदर्य शैली पर निर्भर करता है । महापुराण 1. 62-111