शीलकल्याणक: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> एक व्रत । मनुष्यणी, देवांगना, अचित्ता (चित्रस्था) और तिर्यंचणी इन चार प्रकार की स्त्रियों का पाँचों इंद्रियों और मन, वचन, काय तथा कृत, कारित-अनुमोदना रूप नौ कोटियों से किया गया एक सौ अस्सी (4 × 5 = 20 × 9 = 180) प्रकार का त्याग ब्रह्मचर्य-महाव्रत है । इस व्रत में इस प्रकार एक सौ अस्सी उपवास और इतनी ही पारणाएँ की जाती है । इसमें क्रमश: एक उपवास और एक पारणा करनी चाहिए । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.103, 112 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> एक व्रत । मनुष्यणी, देवांगना, अचित्ता (चित्रस्था) और तिर्यंचणी इन चार प्रकार की स्त्रियों का पाँचों इंद्रियों और मन, वचन, काय तथा कृत, कारित-अनुमोदना रूप नौ कोटियों से किया गया एक सौ अस्सी (4 × 5 = 20 × 9 = 180) प्रकार का त्याग ब्रह्मचर्य-महाव्रत है । इस व्रत में इस प्रकार एक सौ अस्सी उपवास और इतनी ही पारणाएँ की जाती है । इसमें क्रमश: एक उपवास और एक पारणा करनी चाहिए । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_34#103|हरिवंशपुराण - 34.103]], 112 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
एक व्रत । मनुष्यणी, देवांगना, अचित्ता (चित्रस्था) और तिर्यंचणी इन चार प्रकार की स्त्रियों का पाँचों इंद्रियों और मन, वचन, काय तथा कृत, कारित-अनुमोदना रूप नौ कोटियों से किया गया एक सौ अस्सी (4 × 5 = 20 × 9 = 180) प्रकार का त्याग ब्रह्मचर्य-महाव्रत है । इस व्रत में इस प्रकार एक सौ अस्सी उपवास और इतनी ही पारणाएँ की जाती है । इसमें क्रमश: एक उपवास और एक पारणा करनी चाहिए । हरिवंशपुराण - 34.103, 112