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<p class="HindiText">= सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण,प्रत्याख्यान, कायोत्सर्ग-ये छह आवश्यक सदा करने चाहिए।</p> | |||
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<div class="HindiText"> <p> मुनियों के छ: आवश्यक कर्त्तव्य । उनके नाम हैं—सामायिक, वंदना, स्तुति, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय और कायोत्सर्ग । <span class="GRef"> महापुराण 61.119, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2. 128, 34.142-146 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> मुनियों के छ: आवश्यक कर्त्तव्य । उनके नाम हैं—सामायिक, वंदना, स्तुति, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय और कायोत्सर्ग । <span class="GRef"> महापुराण 61.119, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#128|हरिवंशपुराण - 2.128]], 34.142-146 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 220
समदा थओ य वंदण पाडिक्कमणं तहेव णादव्वं। पच्चक्खाण विसग्गो करणीयावासया छप्पि ॥22॥
= सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण,प्रत्याख्यान, कायोत्सर्ग-ये छह आवश्यक सदा करने चाहिए।
साधु और श्रावकों के आवश्यक क्रियाओं के बारे में विस्तार से जानने के लिये देखें आवश्यक ।
पुराणकोष से
मुनियों के छ: आवश्यक कर्त्तव्य । उनके नाम हैं—सामायिक, वंदना, स्तुति, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय और कायोत्सर्ग । महापुराण 61.119, हरिवंशपुराण - 2.128, 34.142-146