पांडुकशिला: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> पांडुक वन में स्थित चार शिलाओं में एक सुवर्णमयी शिला । यह पांडुक वन के पूर्व और उत्तर दिशा के बीच (ईशान) में स्थित, सौ योजन लंबी, पचास योजन चौड़ी और आठ योजन ऊँची अर्द्धचंद्राकार है । इसमें सिंहासन और मंगल द्रव्य की रचनाएँ भी हैं । <span class="GRef"> महापुराण 13.82-84, 88-93, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.347-348,34.44 </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 2. 123, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 8. 118-122 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> पांडुक वन में स्थित चार शिलाओं में एक सुवर्णमयी शिला । यह पांडुक वन के पूर्व और उत्तर दिशा के बीच (ईशान) में स्थित, सौ योजन लंबी, पचास योजन चौड़ी और आठ योजन ऊँची अर्द्धचंद्राकार है । इसमें सिंहासन और मंगल द्रव्य की रचनाएँ भी हैं । <span class="GRef"> महापुराण 13.82-84, 88-93, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#347|हरिवंशपुराण - 5.347-348]],34.44 </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 2. 123, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 8. 118-122 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
पांडुक वन में स्थित चार शिलाओं में एक सुवर्णमयी शिला । यह पांडुक वन के पूर्व और उत्तर दिशा के बीच (ईशान) में स्थित, सौ योजन लंबी, पचास योजन चौड़ी और आठ योजन ऊँची अर्द्धचंद्राकार है । इसमें सिंहासन और मंगल द्रव्य की रचनाएँ भी हैं । महापुराण 13.82-84, 88-93, हरिवंशपुराण - 5.347-348,34.44 पांडवपुराण 2. 123, वीरवर्द्धमान चरित्र 8. 118-122