निर्नामक: Difference between revisions
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<p> हस्तिनापुर के राजा गंगदेव और रानी नन्दयशा का सातवां पुत्र । रानी ने इसे उत्पन्न होते हो त्याग दिया था । रेवती धाय के द्वारा इसका पालन-पोषण हुआ । इसी नगर के एक सेठ का पुत्र शंख इसका मित्र था । शंख एवं अन्य राजकुमारों के साथ इसे भोजन करते हुए देखकर इसकी माँ ने इसे लात मारकर अपमानित किया । इस अपमान से दुःखी होकर शंख के साथ वह वन चला गया । पूर्वभव में रसोइया की पर्याय में इसने सुधर्म मुनि को मारा था । यक्षलिक की पर्याय में इसने सर्पिणी को सताया था । यह सर्पिणी ही इस पर्याय में नन्दयशा हुई थी । इसी कारण यह अपनी माँ के द्वेष का कारण बना । अपने पूर्वभव को द्रुमषेण मुनि से ज्ञात कर इसने सिंह-निष्क्रीडित नामक कठिन तप किया तथा आगामी भव में नारायण होने का निदान बाँधा । अन्त में मरकर यह कंस का शत्रु कृष्ण हुआ । महापुराण 71. 298, हरिवंशपुराण 33.141-166</p> | <p> हस्तिनापुर के राजा गंगदेव और रानी नन्दयशा का सातवां पुत्र । रानी ने इसे उत्पन्न होते हो त्याग दिया था । रेवती धाय के द्वारा इसका पालन-पोषण हुआ । इसी नगर के एक सेठ का पुत्र शंख इसका मित्र था । शंख एवं अन्य राजकुमारों के साथ इसे भोजन करते हुए देखकर इसकी माँ ने इसे लात मारकर अपमानित किया । इस अपमान से दुःखी होकर शंख के साथ वह वन चला गया । पूर्वभव में रसोइया की पर्याय में इसने सुधर्म मुनि को मारा था । यक्षलिक की पर्याय में इसने सर्पिणी को सताया था । यह सर्पिणी ही इस पर्याय में नन्दयशा हुई थी । इसी कारण यह अपनी माँ के द्वेष का कारण बना । अपने पूर्वभव को द्रुमषेण मुनि से ज्ञात कर इसने सिंह-निष्क्रीडित नामक कठिन तप किया तथा आगामी भव में नारायण होने का निदान बाँधा । अन्त में मरकर यह कंस का शत्रु कृष्ण हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 71. 298, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.141-166 </span></p> | ||
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Revision as of 21:43, 5 July 2020
हस्तिनापुर के राजा गंगदेव और रानी नन्दयशा का सातवां पुत्र । रानी ने इसे उत्पन्न होते हो त्याग दिया था । रेवती धाय के द्वारा इसका पालन-पोषण हुआ । इसी नगर के एक सेठ का पुत्र शंख इसका मित्र था । शंख एवं अन्य राजकुमारों के साथ इसे भोजन करते हुए देखकर इसकी माँ ने इसे लात मारकर अपमानित किया । इस अपमान से दुःखी होकर शंख के साथ वह वन चला गया । पूर्वभव में रसोइया की पर्याय में इसने सुधर्म मुनि को मारा था । यक्षलिक की पर्याय में इसने सर्पिणी को सताया था । यह सर्पिणी ही इस पर्याय में नन्दयशा हुई थी । इसी कारण यह अपनी माँ के द्वेष का कारण बना । अपने पूर्वभव को द्रुमषेण मुनि से ज्ञात कर इसने सिंह-निष्क्रीडित नामक कठिन तप किया तथा आगामी भव में नारायण होने का निदान बाँधा । अन्त में मरकर यह कंस का शत्रु कृष्ण हुआ । महापुराण 71. 298, हरिवंशपुराण 33.141-166