शातकुंभविधि: Difference between revisions
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<p> एक व्रत । इस व्रत के तीन भेद हैं― उत्तम, मध्यम और जघन्य । जिसमें पाँच से एक तक | <p> एक व्रत । इस व्रत के तीन भेद हैं― उत्तम, मध्यम और जघन्य । जिसमें पाँच से एक तक संख्या लिखने के पश्चात् पाँच को छोड़कर चार से एक तक तीन बार संख्या लिखकर संख्याओं के योग के अनुसार उपवास और जितनी बार उपवास सूचक अंकों में परिवर्तन हो उतनी पारणाएं करना जघन्य शातकुम्भव्रतविधि है । इसमें पैतालीस उपवास और सत्रह पारणाएँ की जाती है । मध्यम शातकुम्भविधि में नौ से एक तक तथा आठ से एक तक तीन बार अंक लिखे जाते हैं । इसी प्रकार उत्तम शातकुम्भविधि में सोलह अंकों को सोलह से घटते क्रम में एक तक और पश्चात् तीन बार पन्द्रह से एक अंक तक का प्रस्तार बनाया जाता है । मध्यमव्रत में एक सौ तिरेपन उपवास और तैंतीस पारणाएँ तथा उत्तम व्रत में चार सौ छियानवे उपवास और इकसठ पारणा की जाती हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34. 87-89 </span></p> | ||
Revision as of 21:48, 5 July 2020
एक व्रत । इस व्रत के तीन भेद हैं― उत्तम, मध्यम और जघन्य । जिसमें पाँच से एक तक संख्या लिखने के पश्चात् पाँच को छोड़कर चार से एक तक तीन बार संख्या लिखकर संख्याओं के योग के अनुसार उपवास और जितनी बार उपवास सूचक अंकों में परिवर्तन हो उतनी पारणाएं करना जघन्य शातकुम्भव्रतविधि है । इसमें पैतालीस उपवास और सत्रह पारणाएँ की जाती है । मध्यम शातकुम्भविधि में नौ से एक तक तथा आठ से एक तक तीन बार अंक लिखे जाते हैं । इसी प्रकार उत्तम शातकुम्भविधि में सोलह अंकों को सोलह से घटते क्रम में एक तक और पश्चात् तीन बार पन्द्रह से एक अंक तक का प्रस्तार बनाया जाता है । मध्यमव्रत में एक सौ तिरेपन उपवास और तैंतीस पारणाएँ तथा उत्तम व्रत में चार सौ छियानवे उपवास और इकसठ पारणा की जाती हैं । हरिवंशपुराण 34. 87-89