सत्यंधर: Difference between revisions
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<p> हेमांगद देश के राजपुर नगर का राजा । इसकी रानी विजया और मंत्री काष्ठांगारिक था । इसके पुरोहित ने राजपुत्र को मन्त्री का हन्ता बताया था, जिससे मंत्री ने कुपित होकर इसे मार डाला था और स्वयं इसके राज्य का स्वामी हो गया था । इसने रानी को गुप्त रूप से यंत्र में बैठाकर महल से बाहर भेज दिया था । यंत्र उड़कर नगर के बाहर श्मशान में नीचे उतरा । रानी ने यहाँ एक पुत्र को जन्म दिया । पुत्र का नाम जीवंधर रखा गया था । इस राजा की भामारति और अनंगपताका दो छोटी रानियाँ और थी । इन रानियों से क्रमश: मधुर और वकुल दो पुत्र हुए थे । अन्त में इसके पुत्र जीवन्धर ने मंत्री काष्ठांगारिक को मारकर अपना राज्य प्राप्त कर लिया था । महापुराण 75. 188-190, 214-229, 243, 254-255, 666-671</p> | <p> हेमांगद देश के राजपुर नगर का राजा । इसकी रानी विजया और मंत्री काष्ठांगारिक था । इसके पुरोहित ने राजपुत्र को मन्त्री का हन्ता बताया था, जिससे मंत्री ने कुपित होकर इसे मार डाला था और स्वयं इसके राज्य का स्वामी हो गया था । इसने रानी को गुप्त रूप से यंत्र में बैठाकर महल से बाहर भेज दिया था । यंत्र उड़कर नगर के बाहर श्मशान में नीचे उतरा । रानी ने यहाँ एक पुत्र को जन्म दिया । पुत्र का नाम जीवंधर रखा गया था । इस राजा की भामारति और अनंगपताका दो छोटी रानियाँ और थी । इन रानियों से क्रमश: मधुर और वकुल दो पुत्र हुए थे । अन्त में इसके पुत्र जीवन्धर ने मंत्री काष्ठांगारिक को मारकर अपना राज्य प्राप्त कर लिया था । <span class="GRef"> महापुराण 75. 188-190, 214-229, 243, 254-255, 666-671 </span></p> | ||
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Revision as of 21:48, 5 July 2020
हेमांगद देश के राजपुर नगर का राजा । इसकी रानी विजया और मंत्री काष्ठांगारिक था । इसके पुरोहित ने राजपुत्र को मन्त्री का हन्ता बताया था, जिससे मंत्री ने कुपित होकर इसे मार डाला था और स्वयं इसके राज्य का स्वामी हो गया था । इसने रानी को गुप्त रूप से यंत्र में बैठाकर महल से बाहर भेज दिया था । यंत्र उड़कर नगर के बाहर श्मशान में नीचे उतरा । रानी ने यहाँ एक पुत्र को जन्म दिया । पुत्र का नाम जीवंधर रखा गया था । इस राजा की भामारति और अनंगपताका दो छोटी रानियाँ और थी । इन रानियों से क्रमश: मधुर और वकुल दो पुत्र हुए थे । अन्त में इसके पुत्र जीवन्धर ने मंत्री काष्ठांगारिक को मारकर अपना राज्य प्राप्त कर लिया था । महापुराण 75. 188-190, 214-229, 243, 254-255, 666-671