प्रवृत्ति: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1">प्रवृत्ति</strong></span><br> | <li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1">प्रवृत्ति</strong></span><br> न्यायदर्शन सूत्र/ उत्थानिका /1/1/1/1/5 <span class="SanskritText">तस्य (ज्ञातुः) ईप्साजिहासाप्रयुक्तस्य समीहा प्रवृत्तिरित्युच्यते ।</span> = <span class="HindiText">(प्रमाण से किसी वस्तु को जानकर) ज्ञाता के पाने या छोड़ने की इच्छासहित चेष्टा का नाम प्रवृत्ति है । <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2">प्रवृत्ति के भेद व उनके लक्षण</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2">प्रवृत्ति के भेद व उनके लक्षण</strong> </span><br /> | ||
न्यायदर्शन सूत्र/ टी./1/1/2/8/6 <span class="SanskritText">त्रिविधा चास्य शास्त्रस्य प्रवृत्तिरुद्देशो लक्षणं परीक्षा चेति । तत्र नामधेयेन पदार्थमात्रस्याभिधानमुद्देशः तत्रोद्दिष्टस्य तत्त्वव्यवच्छेद को धर्मो लक्षणम् । लक्षितस्य यथालक्षणमुपापद्यते न वेति प्रमाणैरवधारणं परीक्षा ।</span> =<span class="HindiText"> शास्त्र की प्रवृत्ति तीन प्रकार की है - जैसे उद्देश्य, लक्षण और परीक्षा, इनमें से पदार्थों के नाममात्र कथन को उद्देश्य कहते हैं । उद्दिष्ट पदार्थ के अयथार्थ बोध के निवारण करने वाले धर्म को लक्षण कहते हैं । उद्दिष्ट पदार्थ के जो लक्षण किये गये हैं, वे ठीक हैं या नहीं, इसको प्रमाण द्वारा निश्चय कर धारण करने को परीक्षा कहते हैं ।<br /> | |||
</span></li> | </span></li> | ||
</ol> | </ol> |
Revision as of 19:13, 17 July 2020
- प्रवृत्ति
न्यायदर्शन सूत्र/ उत्थानिका /1/1/1/1/5 तस्य (ज्ञातुः) ईप्साजिहासाप्रयुक्तस्य समीहा प्रवृत्तिरित्युच्यते । = (प्रमाण से किसी वस्तु को जानकर) ज्ञाता के पाने या छोड़ने की इच्छासहित चेष्टा का नाम प्रवृत्ति है ।
- प्रवृत्ति के भेद व उनके लक्षण
न्यायदर्शन सूत्र/ टी./1/1/2/8/6 त्रिविधा चास्य शास्त्रस्य प्रवृत्तिरुद्देशो लक्षणं परीक्षा चेति । तत्र नामधेयेन पदार्थमात्रस्याभिधानमुद्देशः तत्रोद्दिष्टस्य तत्त्वव्यवच्छेद को धर्मो लक्षणम् । लक्षितस्य यथालक्षणमुपापद्यते न वेति प्रमाणैरवधारणं परीक्षा । = शास्त्र की प्रवृत्ति तीन प्रकार की है - जैसे उद्देश्य, लक्षण और परीक्षा, इनमें से पदार्थों के नाममात्र कथन को उद्देश्य कहते हैं । उद्दिष्ट पदार्थ के अयथार्थ बोध के निवारण करने वाले धर्म को लक्षण कहते हैं । उद्दिष्ट पदार्थ के जो लक्षण किये गये हैं, वे ठीक हैं या नहीं, इसको प्रमाण द्वारा निश्चय कर धारण करने को परीक्षा कहते हैं ।
- प्रवृत्ति में निवृत्ति अंश - देखें संवर - 2.4
- प्रवृत्ति व निवृत्ति से अतीत भूमिका ही व्रत है - देखें व्रत - 3.9