मघवा: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) | <p id="1"> (1) जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र से संबंधित वत्स देश की कौशांबी नगरी का नृप । इसकी वीतशोका महादेवी तथा रघु पुत्र था । <span class="GRef"> महापुराण 70. 63-64 </span></p> | ||
<p id="2">(2) तीर्थंकर | <p id="2">(2) तीर्थंकर चंद्रप्रभ का मुख्य प्रश्नकर्ता । <span class="GRef"> महापुराण 76.530 </span></p> | ||
<p id="3">(3) अवसर्पिणी काल के चौथे दुःषमा-सुषमा काल में उत्पन्न शलाका पुरुष एवं तीसरे चक्रवर्ती । ये तीर्थंकर धर्मनाथ के तीर्थ में उत्पन्न हुए थे । कोशलदेव की अयोध्या नगरी के राजा सुमित्र इनके पिता तथा रानी भद्रा इनकी माता थी । इनकी आयु पाँच लाख वर्ष थी शरीर स्वर्ण के समान | <p id="3">(3) अवसर्पिणी काल के चौथे दुःषमा-सुषमा काल में उत्पन्न शलाका पुरुष एवं तीसरे चक्रवर्ती । ये तीर्थंकर धर्मनाथ के तीर्थ में उत्पन्न हुए थे । कोशलदेव की अयोध्या नगरी के राजा सुमित्र इनके पिता तथा रानी भद्रा इनकी माता थी । इनकी आयु पाँच लाख वर्ष थी शरीर स्वर्ण के समान कांतिधारी साढ़े चालीस धनुष ऊँचा था । इनके पास चौदह महारत्न, नौ निधियों थीं । इनकी छियानवे हजार रानियाँ थीं । इन्होंने मुनि अभयघोष से तत्त्वोपदेश सुनकर प्रियमित्र पुत्र को राज्य सौंप कर के तथा संयम धारण कर के कर्मों का नाश किया और ये संसार से मुक्त हुए । दूसरे पूर्वभव में ये पुंडरीकिणी नगरी के शशिप्रभ राजा और प्रथम पूर्वभव में स्वर्ग में देव थे । <span class="GRef"> महापुराण 61. 88-102, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20.131-133, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 286, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 109-110 </span></p> | ||
Revision as of 16:30, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से == नरक की छठी पृथिवी अपर नाम तम:प्रभा–देखें नरक - 5।
पुराणकोष से
(1) जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र से संबंधित वत्स देश की कौशांबी नगरी का नृप । इसकी वीतशोका महादेवी तथा रघु पुत्र था । महापुराण 70. 63-64
(2) तीर्थंकर चंद्रप्रभ का मुख्य प्रश्नकर्ता । महापुराण 76.530
(3) अवसर्पिणी काल के चौथे दुःषमा-सुषमा काल में उत्पन्न शलाका पुरुष एवं तीसरे चक्रवर्ती । ये तीर्थंकर धर्मनाथ के तीर्थ में उत्पन्न हुए थे । कोशलदेव की अयोध्या नगरी के राजा सुमित्र इनके पिता तथा रानी भद्रा इनकी माता थी । इनकी आयु पाँच लाख वर्ष थी शरीर स्वर्ण के समान कांतिधारी साढ़े चालीस धनुष ऊँचा था । इनके पास चौदह महारत्न, नौ निधियों थीं । इनकी छियानवे हजार रानियाँ थीं । इन्होंने मुनि अभयघोष से तत्त्वोपदेश सुनकर प्रियमित्र पुत्र को राज्य सौंप कर के तथा संयम धारण कर के कर्मों का नाश किया और ये संसार से मुक्त हुए । दूसरे पूर्वभव में ये पुंडरीकिणी नगरी के शशिप्रभ राजा और प्रथम पूर्वभव में स्वर्ग में देव थे । महापुराण 61. 88-102, पद्मपुराण 20.131-133, हरिवंशपुराण 60. 286, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 109-110