सुप्रभ: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) धृतवर द्वीप का एक रक्षक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.642 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) धृतवर द्वीप का एक रक्षक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.642 </span></p> | ||
<p id="2">(2) कुंडलवर द्वीप के मध्य में स्थित कुंडलगिरि की दक्षिण दिशा संबंधी इस नाम का एक कूट । महापद्म देव की यह निवासभूमि है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.692 </span></p> | <p id="2">(2) कुंडलवर द्वीप के मध्य में स्थित कुंडलगिरि की दक्षिण दिशा संबंधी इस नाम का एक कूट । महापद्म देव की यह निवासभूमि है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.692 </span></p> | ||
<p>( | <p id="3">(3) आकाशस्फटिक मणि से निर्मित पश्चिम द्वार का एक नाम । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57.59 </span></p> | ||
<p id="4">(4) अवसर्पिणी काल के दुःषमा-सुषमा चौथे काल में उत्पन्न चौथे बलभद्र । | <p id="4">(4) अवसर्पिणी काल के दुःषमा-सुषमा चौथे काल में उत्पन्न चौथे बलभद्र । भरतक्षेत्र की द्वारवती नगरी के राजा सोमप्रभ और उनकी रानी जयवती के पुत्र थे । पुरुषोत्तम नारायण इनका भाई था । इन दोनों का शरीर पचास धनुष ऊँचा था और आयु तीस लाख वर्ष की थी । इन्होंने अंत में भाई के मरण-वियोग से संतप्त होकर सोमप्रभ मुनि से दीक्षा ले ली थी तथा तप द्वारा कर्मों की निर्जरा करके मोक्ष प्राप्त किया था । <span class="GRef"> महापुराण 60. 63-69, 80-81, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20.248, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.290, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 111 </span></p> | ||
<p id="5">(5) तीर्थंकर नमिनाथ का पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 69.52 </span></p> | <p id="5">(5) तीर्थंकर नमिनाथ का पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 69.52 </span></p> | ||
<p id="6">(6) सनत्कुमार चक्रवर्ती के पूर्वभव के जीव धर्मरुचि राजा का पिता । तिलकसुंदरी | <p id="6">(6) सनत्कुमार चक्रवर्ती के पूर्वभव के जीव धर्मरुचि राजा का पिता । तिलकसुंदरी इनकी रानी थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.147-148 </span></p> | ||
<p id="7">(7) महापुरी नगरी के राजा धर्मरुचि के दीक्षागुरु । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.149 </span></p> | <p id="7">(7) महापुरी नगरी के राजा धर्मरुचि के दीक्षागुरु । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.149 </span></p> | ||
<p id="8">(8) महापद्म चक्रवर्ती के पूर्वभव का जीव तथा वीतशोका नगरी के चिंत नामक राजा के दीक्षागुरु । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.178 </span></p> | <p id="8">(8) महापद्म चक्रवर्ती के पूर्वभव का जीव तथा वीतशोका नगरी के चिंत नामक राजा के दीक्षागुरु । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.178 </span></p> | ||
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Revision as of 14:00, 30 September 2022
सिद्धांतकोष से
- कुंडल पर्वतस्थ एक कूट-देखें लोक - 5.12;
- दक्षिणधृतवर द्वीप का रक्षक देव-देखें व्यंतर - 4.7।
- उत्तर अरुणीवर द्वीप का रक्षक देव-देखें व्यंतर - 4.7।
- पूर्वभव नं.2 में पूर्व विदेह के नंदन नगर में महाबल नामक राजा था। पूर्व भव में सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ। वर्तमान भव में चौथे बलदेव थे। ( महापुराण/60/58-63 )। विशेष परिचय-देखें शलाका पुरुष - 3।
पुराणकोष से
(1) धृतवर द्वीप का एक रक्षक देव । हरिवंशपुराण 5.642
(2) कुंडलवर द्वीप के मध्य में स्थित कुंडलगिरि की दक्षिण दिशा संबंधी इस नाम का एक कूट । महापद्म देव की यह निवासभूमि है । हरिवंशपुराण 5.692
(3) आकाशस्फटिक मणि से निर्मित पश्चिम द्वार का एक नाम । हरिवंशपुराण 57.59
(4) अवसर्पिणी काल के दुःषमा-सुषमा चौथे काल में उत्पन्न चौथे बलभद्र । भरतक्षेत्र की द्वारवती नगरी के राजा सोमप्रभ और उनकी रानी जयवती के पुत्र थे । पुरुषोत्तम नारायण इनका भाई था । इन दोनों का शरीर पचास धनुष ऊँचा था और आयु तीस लाख वर्ष की थी । इन्होंने अंत में भाई के मरण-वियोग से संतप्त होकर सोमप्रभ मुनि से दीक्षा ले ली थी तथा तप द्वारा कर्मों की निर्जरा करके मोक्ष प्राप्त किया था । महापुराण 60. 63-69, 80-81, पद्मपुराण 20.248, हरिवंशपुराण 60.290, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 111
(5) तीर्थंकर नमिनाथ का पुत्र । महापुराण 69.52
(6) सनत्कुमार चक्रवर्ती के पूर्वभव के जीव धर्मरुचि राजा का पिता । तिलकसुंदरी इनकी रानी थी । पद्मपुराण 20.147-148
(7) महापुरी नगरी के राजा धर्मरुचि के दीक्षागुरु । पद्मपुराण 20.149
(8) महापद्म चक्रवर्ती के पूर्वभव का जीव तथा वीतशोका नगरी के चिंत नामक राजा के दीक्षागुरु । पद्मपुराण 20.178
(9) सीता के स्वयंवर में सम्मिलित हुआ एक राजकुमार । पद्मपुराण 28.215
(10) विनीता नगरी का राजा । इसकी रानी प्रह्लादना तथा सूर्योदय और चंद्रोदय पुत्र थे । पद्मपुराण 85.45
(11) जंबूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में मत्तकोकिल ग्राम के राजा कांतशोक का पुत्र । इसने संयत मुनि के पास जिनदीक्षा ले ली थी । कषायों की उपशम अवस्था में मरणकर यह सर्वार्थसिद्धि में उत्पन्न हुआ । यह स्वर्ग से चयकर विद्याधरों का राजा बाली हुआ । पद्मपुराण 106.190-197
(12) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25. 197