क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="HindiText">देखें [[ सम्यग्दर्शन#IV.4 | सम्यग्दर्शन - IV.4]]। | <p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/2/5/157/6 </span><span class="SanskritText">अनंतानुबंधिकषायचतुष्टयस्य मिथ्यात्वसम्यङ्मिथ्यात्वयोश्चोदयक्षयात्सदुपशमाच्च सम्यक्त्वस्य देशघातिस्पर्धकस्योदये तत्त्वार्थश्रद्धानं क्षायोपशमिकं सम्यक्त्वम् ।</span> =<span class="HindiText">चार अनंतानुबंधी कषाय, मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन छह प्रकृतियों के उदयाभावी क्षय और इन्हीं के सदवस्थारूप उपशम से, देशघाती स्पर्धकवाली सम्यक्त्व प्रकृति के उदय में जो तत्त्वार्थश्रद्धान होता है वह '''क्षायोपशमिक सम्यक्त्व''' है। </span>(<span class="GRef"> राजवार्तिक/2/5/8/108/1 </span>);</p> | ||
<span class="HindiText">देखें [[ सम्यग्दर्शन#IV.4.1.1 | सम्यग्दर्शन - IV.4.1.1]]।</span> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 8: | Line 11: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: क्ष]] | [[Category: क्ष]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Revision as of 10:21, 14 April 2023
सर्वार्थसिद्धि/2/5/157/6 अनंतानुबंधिकषायचतुष्टयस्य मिथ्यात्वसम्यङ्मिथ्यात्वयोश्चोदयक्षयात्सदुपशमाच्च सम्यक्त्वस्य देशघातिस्पर्धकस्योदये तत्त्वार्थश्रद्धानं क्षायोपशमिकं सम्यक्त्वम् । =चार अनंतानुबंधी कषाय, मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन छह प्रकृतियों के उदयाभावी क्षय और इन्हीं के सदवस्थारूप उपशम से, देशघाती स्पर्धकवाली सम्यक्त्व प्रकृति के उदय में जो तत्त्वार्थश्रद्धान होता है वह क्षायोपशमिक सम्यक्त्व है। ( राजवार्तिक/2/5/8/108/1 );
देखें सम्यग्दर्शन - IV.4.1.1।