हरिबल: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> (1) विजयार्ध पर्वत की अलका नगरी के राजा पुरबल और रानी ज्योतिमाला का पुत्र । इसने अनंतवीर्य मुनिराज के पास | <span class="HindiText"> (1) विजयार्ध पर्वत की अलका नगरी के राजा पुरबल और रानी ज्योतिमाला का पुत्र । इसने अनंतवीर्य मुनिराज के पास द्रव्यसंयम धारण कर लिया था । इस संयम के प्रभाव से यह मरकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर रथनूपुर नगर के राजा सुकेतु को सत्यभामा पुत्री हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 71.311-313 </span></span><br /> | ||
<span class="HindiText"> (2) विजयार्ध पर्वत की अलका नगरी का इस नाम का एक राजा । इसके क्रमश: दो छोटे भाई थे― महासेन और भूतिलक । इसकी दो रानियाँ थी― धारिणी और श्रीमती । इनमें धारिणी का पुत्र भीमक तथा श्रीमती रानी का पुत्र हिरण्यवर्मा था । वैराग्य उत्पन्न होने पर इसने भीमक को राज्य और हिरण्यवर्मा को विद्या देकर विपुलमति चारणऋद्धिधारी मुनि के पास दीक्षा ले ली थी तथा कर्म नाश कर मुक्त हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 76.262-271 </span></span> | <span class="HindiText"> (2) विजयार्ध पर्वत की अलका नगरी का इस नाम का एक राजा । इसके क्रमश: दो छोटे भाई थे― महासेन और भूतिलक । इसकी दो रानियाँ थी― धारिणी और श्रीमती । इनमें धारिणी का पुत्र भीमक तथा श्रीमती रानी का पुत्र हिरण्यवर्मा था । वैराग्य उत्पन्न होने पर इसने भीमक को राज्य और हिरण्यवर्मा को विद्या देकर विपुलमति चारणऋद्धिधारी मुनि के पास दीक्षा ले ली थी तथा कर्म नाश कर मुक्त हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 76.262-271 </span></span> | ||
Latest revision as of 21:21, 20 August 2023
(1) विजयार्ध पर्वत की अलका नगरी के राजा पुरबल और रानी ज्योतिमाला का पुत्र । इसने अनंतवीर्य मुनिराज के पास द्रव्यसंयम धारण कर लिया था । इस संयम के प्रभाव से यह मरकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर रथनूपुर नगर के राजा सुकेतु को सत्यभामा पुत्री हुआ । महापुराण 71.311-313
(2) विजयार्ध पर्वत की अलका नगरी का इस नाम का एक राजा । इसके क्रमश: दो छोटे भाई थे― महासेन और भूतिलक । इसकी दो रानियाँ थी― धारिणी और श्रीमती । इनमें धारिणी का पुत्र भीमक तथा श्रीमती रानी का पुत्र हिरण्यवर्मा था । वैराग्य उत्पन्न होने पर इसने भीमक को राज्य और हिरण्यवर्मा को विद्या देकर विपुलमति चारणऋद्धिधारी मुनि के पास दीक्षा ले ली थी तथा कर्म नाश कर मुक्त हुआ था । महापुराण 76.262-271