सात्यकि: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> आचार्य नंदिवर्धन के संघ के एक अवधिज्ञानी साधु । शालिग्राम के अग्निभूति और वायुभूति ब्राह्मण भाईयों को इन्होंने पूर्व जन्म में वे दोनों शृंगाल थे― ऐसा कहा था । इनके ऐसा कहने से अग्निभूति और वायुभूति ने इन्हें तलवार से मारने का उद्यम किया था किंतु किसी यक्ष के द्वारा कील दिये जाने से वे इन्हें नहीं मार सके थे । अंत में दोनों जैसे ही अकीलित हुए कि इन्हें उन्होंने श्रावक धर्म श्रवण किया और दोनों श्रावक हो गये । <span class="GRef"> पद्मपुराण 109. 41-48, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 43.99-100, 110-115, 136-145 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> आचार्य नंदिवर्धन के संघ के एक अवधिज्ञानी साधु । शालिग्राम के अग्निभूति और वायुभूति ब्राह्मण भाईयों को इन्होंने पूर्व जन्म में वे दोनों शृंगाल थे― ऐसा कहा था । इनके ऐसा कहने से अग्निभूति और वायुभूति ने इन्हें तलवार से मारने का उद्यम किया था किंतु किसी यक्ष के द्वारा कील दिये जाने से वे इन्हें नहीं मार सके थे । अंत में दोनों जैसे ही अकीलित हुए कि इन्हें उन्होंने श्रावक धर्म श्रवण किया और दोनों श्रावक हो गये । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_109#41|पद्मपुराण - 109.41-48]], </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 43.99-100, 110-115, 136-145 </span></p> | ||
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Revision as of 22:36, 17 November 2023
आचार्य नंदिवर्धन के संघ के एक अवधिज्ञानी साधु । शालिग्राम के अग्निभूति और वायुभूति ब्राह्मण भाईयों को इन्होंने पूर्व जन्म में वे दोनों शृंगाल थे― ऐसा कहा था । इनके ऐसा कहने से अग्निभूति और वायुभूति ने इन्हें तलवार से मारने का उद्यम किया था किंतु किसी यक्ष के द्वारा कील दिये जाने से वे इन्हें नहीं मार सके थे । अंत में दोनों जैसे ही अकीलित हुए कि इन्हें उन्होंने श्रावक धर्म श्रवण किया और दोनों श्रावक हो गये । पद्मपुराण - 109.41-48, हरिवंशपुराण 43.99-100, 110-115, 136-145