पुष्कलावती: Difference between revisions
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<p id="1">(1) जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह क्षेत्र में सोता नदी और नील कुलाचल के मध्य प्रदक्षिणा रूप से स्थित छ: खण्डों में विभाजित एक देश । पुण्डरीकिणी नगरी इसकी राजधानी थी । विजयार्ध पर्वत भी इसी देश में है । यह तीर्थंकरों के मन्दिरों, चतुर्विध संघ और गणधरों से मुक्त रहता है । यहाँ मनुष्यों की शारीरिक ऊँचाई सौ मनुष्य पर आयु एक पूर्व कोटि वर्ष प्रमाण होती है । यहाँ सदा चौथा काल रहता है । यहाँ के मनुष्य मरकर स्वर्ग और मोक्ष ही पाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 46.19, 51. 2-3, 209-213, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.244-246, 257-358, 34.34, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 2.6-17 </span></p> | |||
<p id="2">(2) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में भी इस नाम का एक देश है । <span class="GRef"> महापुराण 6.26-27, 63, 142, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.53 </span></p> | |||
<p id="3">(3) जम्बूद्वीप के गान्धार देश की नगरी । <span class="GRef"> महापुराण 71. 425, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 44.45, 60. 43, 68 </span></p> | |||
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Revision as of 21:43, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से == पूर्व विदेह के पुष्कलावर्त क्षेत्र की मुख्य नगरी। अपरनाम पुण्डरीकिनी। - देखें लोक - 5.2।
पुराणकोष से
(1) जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह क्षेत्र में सोता नदी और नील कुलाचल के मध्य प्रदक्षिणा रूप से स्थित छ: खण्डों में विभाजित एक देश । पुण्डरीकिणी नगरी इसकी राजधानी थी । विजयार्ध पर्वत भी इसी देश में है । यह तीर्थंकरों के मन्दिरों, चतुर्विध संघ और गणधरों से मुक्त रहता है । यहाँ मनुष्यों की शारीरिक ऊँचाई सौ मनुष्य पर आयु एक पूर्व कोटि वर्ष प्रमाण होती है । यहाँ सदा चौथा काल रहता है । यहाँ के मनुष्य मरकर स्वर्ग और मोक्ष ही पाते हैं । महापुराण 46.19, 51. 2-3, 209-213, हरिवंशपुराण 5.244-246, 257-358, 34.34, वीरवर्द्धमान चरित्र 2.6-17
(2) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में भी इस नाम का एक देश है । महापुराण 6.26-27, 63, 142, पांडवपुराण 5.53
(3) जम्बूद्वीप के गान्धार देश की नगरी । महापुराण 71. 425, हरिवंशपुराण 44.45, 60. 43, 68