सोमदत्त: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) महापुर नगर का राजा । यह रोहिणी के | == सिद्धांतकोष से == | ||
<p id="2">(2) यादवों क पक्षधर एक अर्धरथ राजा । हरिवंशपुराण 50.84-85 </p> | इन्होंने जिनदत्त सेठ से आकाशगामिनी विद्या को सद्धि करने का उपाय प्राप्त किया। परन्तु अस्थिर चित्त के कारण सिद्ध न कर सके। फिर उसको विद्युच्चर चोर ने सिद्ध किया। (वृहद् कथा कोश। कथा 4)। | ||
<p id="3">(3) तीर्थङ्कर वृषभदेव के आठवें गणधर । हरिवंशपुराण 12.56</p> | |||
<p id="4">(4) भरतक्षेत्र की चम्पा नगरी के ब्राह्मण सोमदेव और उसकी स्त्री सीमिला का ज्येष्ठ पुत्र । सोमिल और सोमभूति इसके छोटे भाई थे । इसने अपने मामा की पुत्री धनश्री को तथा सोमिल ने मित्रश्री को विवाहा था । अन्त में यह और इसके दोनों भाई वरुण मुनि से दीक्षित हो गये थे । इसकी और इसके भाई सोमिल की पत्नी आर्यिकाएँ हो गयी थी । आयु के अन्त में मरकर ये पाँचों स्वर्ग में सामानिक देव हुए । स्वर्ग से चयकर यह युधिष्ठिर और इसके छोटे दोनों भाई भीम और अर्जुन हुए और दोनों पत्नियों के जीव नकुल एवं सहदेव हुए । महापुराण 72.228-237, 261, 262, हरिवंशपुराण 64. 4-6, 9-13, 136-137, पांडवपुराण 24.75</p> | <noinclude> | ||
<p id="5">(5) वर्धमान नगर का राजा । इसने तीर्थंकर | [[ सोमखेट | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
<p id="6">(6) भरतक्षेत्र के नलिन नगर का राजा । इसने तीर्थंकर चन्द्रप्रभ को नवधा भक्ति से आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । महापुराण 54.217-218</p> | |||
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== पुराणकोष से == | |||
<p id="1"> (1) महापुर नगर का राजा । यह रोहिणी के स्वयंवर में आया था । इसकी रानी पूर्णचन्द्रा, भूरिश्रवा पुत्र और सोमश्री पुत्री थी जिसका विवाह वसुदेव से हुआ था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 24.37-31, 50-52, 59 31. 29 </span></p> | |||
<p id="2">(2) यादवों क पक्षधर एक अर्धरथ राजा । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 50.84-85 </span></p> | |||
<p id="3">(3) तीर्थङ्कर वृषभदेव के आठवें गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12.56 </span></p> | |||
<p id="4">(4) भरतक्षेत्र की चम्पा नगरी के ब्राह्मण सोमदेव और उसकी स्त्री सीमिला का ज्येष्ठ पुत्र । सोमिल और सोमभूति इसके छोटे भाई थे । इसने अपने मामा की पुत्री धनश्री को तथा सोमिल ने मित्रश्री को विवाहा था । अन्त में यह और इसके दोनों भाई वरुण मुनि से दीक्षित हो गये थे । इसकी और इसके भाई सोमिल की पत्नी आर्यिकाएँ हो गयी थी । आयु के अन्त में मरकर ये पाँचों स्वर्ग में सामानिक देव हुए । स्वर्ग से चयकर यह युधिष्ठिर और इसके छोटे दोनों भाई भीम और अर्जुन हुए और दोनों पत्नियों के जीव नकुल एवं सहदेव हुए । <span class="GRef"> महापुराण 72.228-237, 261, 262, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 64. 4-6, 9-13, 136-137, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 24.75 </span></p> | |||
<p id="5">(5) वर्धमान नगर का राजा । इसने तीर्थंकर पद्मप्रभ को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 52.53-54 </span></p> | |||
<p id="6">(6) भरतक्षेत्र के नलिन नगर का राजा । इसने तीर्थंकर चन्द्रप्रभ को नवधा भक्ति से आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 54.217-218 </span></p> | |||
Revision as of 21:49, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से == इन्होंने जिनदत्त सेठ से आकाशगामिनी विद्या को सद्धि करने का उपाय प्राप्त किया। परन्तु अस्थिर चित्त के कारण सिद्ध न कर सके। फिर उसको विद्युच्चर चोर ने सिद्ध किया। (वृहद् कथा कोश। कथा 4)।
पुराणकोष से
(1) महापुर नगर का राजा । यह रोहिणी के स्वयंवर में आया था । इसकी रानी पूर्णचन्द्रा, भूरिश्रवा पुत्र और सोमश्री पुत्री थी जिसका विवाह वसुदेव से हुआ था । हरिवंशपुराण 24.37-31, 50-52, 59 31. 29
(2) यादवों क पक्षधर एक अर्धरथ राजा । हरिवंशपुराण 50.84-85
(3) तीर्थङ्कर वृषभदेव के आठवें गणधर । हरिवंशपुराण 12.56
(4) भरतक्षेत्र की चम्पा नगरी के ब्राह्मण सोमदेव और उसकी स्त्री सीमिला का ज्येष्ठ पुत्र । सोमिल और सोमभूति इसके छोटे भाई थे । इसने अपने मामा की पुत्री धनश्री को तथा सोमिल ने मित्रश्री को विवाहा था । अन्त में यह और इसके दोनों भाई वरुण मुनि से दीक्षित हो गये थे । इसकी और इसके भाई सोमिल की पत्नी आर्यिकाएँ हो गयी थी । आयु के अन्त में मरकर ये पाँचों स्वर्ग में सामानिक देव हुए । स्वर्ग से चयकर यह युधिष्ठिर और इसके छोटे दोनों भाई भीम और अर्जुन हुए और दोनों पत्नियों के जीव नकुल एवं सहदेव हुए । महापुराण 72.228-237, 261, 262, हरिवंशपुराण 64. 4-6, 9-13, 136-137, पांडवपुराण 24.75
(5) वर्धमान नगर का राजा । इसने तीर्थंकर पद्मप्रभ को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । महापुराण 52.53-54
(6) भरतक्षेत्र के नलिन नगर का राजा । इसने तीर्थंकर चन्द्रप्रभ को नवधा भक्ति से आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । महापुराण 54.217-218