पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 11 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="G_HindiText"> | <div class="G_HindiText"> | ||
<p>अब गाथा पूर्वार्ध द्वारा द्रव्यार्थिक-नय से द्रव्य का लक्षण और उत्तरार्ध द्वारा पर्यायार्थिक-नय से पर्याय का लक्षण प्रतिपादित करते हैं --</p> | <p>अब गाथा पूर्वार्ध द्वारा द्रव्यार्थिक-नय से द्रव्य का लक्षण और उत्तरार्ध द्वारा पर्यायार्थिक-नय से पर्याय का लक्षण प्रतिपादित करते हैं --</p> | ||
<p><span class="AnvayArth">उप्पत्ती य विणासो दव्वस्स य णत्थि</span> अनादि-निधन द्रव्य के द्रव्यार्थिक-नय से उत्पत्ति या विनाश नहीं है। तो क्या है? <span class="AnvayArth">अत्थि सब्भावो</span> हैं । वह क्या है? सद्भाव, सत्ता, अस्तित्व है । इसप्रकार इसके द्वारा पूर्व गाथा में कहा गया ही स्पष्ट किया गया है तथा क्षणिक एकांत मत का निराकरण किया गया है। <span class="AnvayArth">विगमुप्पादधुवत्तं करेंति तस्सेव पज्जाया</span> उसी द्रव्य की उत्पाद-व्यय-ध्रुवता को करती हैं । कर्तारूप वे कौन करती हैं? पर्यायें करती हैं ।</p> | <p><span class="AnvayArth">[उप्पत्ती य विणासो दव्वस्स य णत्थि]</span> अनादि-निधन द्रव्य के द्रव्यार्थिक-नय से उत्पत्ति या विनाश नहीं है। तो क्या है? <span class="AnvayArth">[अत्थि सब्भावो]</span> हैं । वह क्या है? सद्भाव, सत्ता, अस्तित्व है । इसप्रकार इसके द्वारा पूर्व गाथा में कहा गया ही स्पष्ट किया गया है तथा क्षणिक एकांत मत का निराकरण किया गया है। <span class="AnvayArth">[विगमुप्पादधुवत्तं करेंति तस्सेव पज्जाया]</span> उसी द्रव्य की उत्पाद-व्यय-ध्रुवता को करती हैं । कर्तारूप वे कौन करती हैं? पर्यायें करती हैं ।</p> | ||
<p></p> | <p></p> | ||
<p>इससे क्या कहा गया है? द्रव्यार्थिकनय से द्रव्य के ही उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य नहीं होते हैं; किन्तु पर्यायार्थिक-नय से होते हैं। किस दृष्टांत से यह सिद्ध होता है ? सुवर्ण, गोरस, मृत्तिका, बाल-बृद्ध-कुमारादि परिणत पुरुषों में तीनों भंगरूप से यह स्पष्ट होता है । इसप्रकार इससे पूर्व गाथा में कहे गए नित्य एकान्त मत के निराकरण को ही दृ़ढ किया गया है ।</p> | <p>इससे क्या कहा गया है? द्रव्यार्थिकनय से द्रव्य के ही उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य नहीं होते हैं; किन्तु पर्यायार्थिक-नय से होते हैं। किस दृष्टांत से यह सिद्ध होता है ? सुवर्ण, गोरस, मृत्तिका, बाल-बृद्ध-कुमारादि परिणत पुरुषों में तीनों भंगरूप से यह स्पष्ट होता है । इसप्रकार इससे पूर्व गाथा में कहे गए नित्य एकान्त मत के निराकरण को ही दृ़ढ किया गया है ।</p> |
Revision as of 17:06, 24 August 2021
अब गाथा पूर्वार्ध द्वारा द्रव्यार्थिक-नय से द्रव्य का लक्षण और उत्तरार्ध द्वारा पर्यायार्थिक-नय से पर्याय का लक्षण प्रतिपादित करते हैं --
[उप्पत्ती य विणासो दव्वस्स य णत्थि] अनादि-निधन द्रव्य के द्रव्यार्थिक-नय से उत्पत्ति या विनाश नहीं है। तो क्या है? [अत्थि सब्भावो] हैं । वह क्या है? सद्भाव, सत्ता, अस्तित्व है । इसप्रकार इसके द्वारा पूर्व गाथा में कहा गया ही स्पष्ट किया गया है तथा क्षणिक एकांत मत का निराकरण किया गया है। [विगमुप्पादधुवत्तं करेंति तस्सेव पज्जाया] उसी द्रव्य की उत्पाद-व्यय-ध्रुवता को करती हैं । कर्तारूप वे कौन करती हैं? पर्यायें करती हैं ।
इससे क्या कहा गया है? द्रव्यार्थिकनय से द्रव्य के ही उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य नहीं होते हैं; किन्तु पर्यायार्थिक-नय से होते हैं। किस दृष्टांत से यह सिद्ध होता है ? सुवर्ण, गोरस, मृत्तिका, बाल-बृद्ध-कुमारादि परिणत पुरुषों में तीनों भंगरूप से यह स्पष्ट होता है । इसप्रकार इससे पूर्व गाथा में कहे गए नित्य एकान्त मत के निराकरण को ही दृ़ढ किया गया है ।
इस गाथा में शुद्ध द्रव्यार्थिक-नय की अपेक्षा नर-नारकादि विभाव परिणामों की उत्पत्ति-विनाश से रहित तथा पर्यायार्थिक-नय की अपेक्षा वीतराग निर्विकल्प समाधि से उत्पन्न सहज परमानन्द सुख रस के आस्वादमय स्वसंवेदन ज्ञान पर्याय से परिणत, सहित शुद्ध जीवास्तिकाय नामक शुद्ध जीवद्रव्य ही उपादेय है यह सूत्र / गाथा का तात्पर्य है ॥११॥
इसप्रकार द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक दो नयों की अपेक्षा (द्रव्य के) लक्षण के व्याख्यान द्वारा गाथा पूर्ण हुई ।