मुख
From जैनकोष
1. धवला 13/5,5,122/ गाथा 35/383
–मुखमर्द्धं शरीरस्य सर्वं वा मुखमुच्यते।
= शरीर के आधे भाग को मुख कहते हैं अथवा पूरा शरीर ही मुख कहलाता है।
धवला 13/5,5, 116/371/13
किं मुहं णाम। जीवपदेसाणं विसिट्ठसंठाणं।
= जीव प्रदेशों के विशिष्ट संस्थान को मुख कहते हैं।
धवला 13/5,5,122/383/8
मुहं सरीरं, तस्स आगारो संठाणं त्ति घेत्तव्वं।
= मुखका अर्थ शरीर है। उसका आकार अर्थात् संस्थान ऐसा ग्रहण करना चाहिए।
2. आदि अर्थात् First Term या Head of a quadrant or first digit in numerical Series या ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/ प्र. 108); (विशेष देखें गणित - II.5.3)।