उपमान
From जैनकोष
न्या./सू./मू. व भाष्य १/१/६ प्रसिद्धसाधर्म्यात्साध्यसाधन मुपमानम् ।६। प्रज्ञातेन सामान्यात्प्रज्ञापनीयस्य प्रज्ञापनमुपमानमिति। यथा गौरेवं गवय इति।
= प्रसिद्ध पदार्थकी तुल्यतासे साध्यके साधनको उपमान कहते हैं। प्रज्ञातके द्वारा सामान्य होनेसे प्रज्ञापनीयका प्रज्ञापन करना उपमान है जैसे `गौ की भाँति गवय होता है' ऐसे कहकर `गवय' का रूप समझाना।
(न्यायबिन्दु / मूल या टीका श्लोक संख्या ३/८५/३६१); ( राजवार्तिक अध्याय संख्या १/२०/१५/७८/१७)
- उपमान प्रमाणका श्रुतज्ञानमें अन्तर्भाव
राजवार्तिक अध्याय संख्या १/२०/१५/७८/१८ इत्युपमानमपि स्वपरप्रतिपत्तिविषयत्वादक्षरानक्षरश्रुते अन्तर्भावयति।
= क्योंकि इसके द्वारा स्व व परकी प्रतिपत्ति हो जाती है। इसलिए इसका अक्षर व अनवक्षर श्रुतज्ञानमें अन्तर्भाव हो जाता है।