अर्ह (सूत्र)
From जैनकोष
भगवती आराधना / विजयोदयी टीका/ गाथा संख्या ६७/१९४/१ अरिहे अर्हः योग्यः। सविचारभक्तप्रत्याख्यानस्यायं योग्यो नेति प्रथमोऽधिकारः।
= अरिह - अर्ह अर्थात् योग्य। सविचारभक्त प्रत्याख्यान सल्लेखनाके लिए कौन व्यक्ति योग्य होता है और कौन नहीं, इसका वर्णन अर्ह सूत्र से किया जाता है। यह प्रथमाधिकार है।
(विस्तारके लिए देखे [[भगवती आराधना]] / मुल या टीका गाथा संख्या ७१-७६)