कालानुयोग - वेद मार्गणा
From जैनकोष
5.>वेद मार्गणा
मार्गणा |
गुणस्थान |
नाना जीवापेक्षया |
एक जीवापेक्षया |
||||||||||
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
||||
नं.1 |
नं.2 |
नं.1 |
नं.3 |
||||||||||
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
स्त्री वेद |
... |
|
24-28 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
115-116 |
1 समय |
उपशम श्रेणी से उतर सवेदी हो द्वितीय समय मृत्यु |
300 से 900 पल्य तक |
अविवक्षित वेद से आकर तहाँ परिभ्रमण। |
पुरुष वेद |
... |
|
24-28 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
118-119 |
अंतर्मु. |
उपशम श्रेणी उतर सवेदी होकर पुन: अवेदी हुआ। मृत्यु होने पर तो पुरुष वेदी देव ही नियम से होगा अत: 1समय की प्ररूपणा नहीं की |
900 सागर |
नंपुसक से आ पुरुषवेदी हो तहाँ परिभ्रमण |
नंपुसक वेद |
... |
|
24-28 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
121-122 |
1 समय |
स्त्री वेदवत् |
असं.पु.परिवर्तन |
एकेंद्रियों में परिभ्रमण |
अपगत वेद उप. |
... |
|
24-28 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
124-125 |
1 समय |
उपशम श्रेणी में अवेदी होकर पुन: सवेदी हो जाना |
अंतर्मुहूर्त |
स्त्री व नंपुसक वेद सहित उपशम श्रेणी चढ़े तो। |
अपगत वेद क्षपक |
... |
|
24-28 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
127-128 |
अंतर्मु. |
|
कुछ कम पूर्व कोड़ि |
सर्व जघन्य काल में संयम धर अवेदी हुआ और उत्कृष्ट आयुपर्यंत रहा |
स्त्री वेद |
1 |
227 |
24-28 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
228-229 |
|
अंतर्मुहूर्त |
गुणस्थान प्रवेश कर पुन: लौटे |
पल्यशत पृथक्त्व |
वेद परिवर्तन करके पुन: लौटे |
|
2-3 |
230-231 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
230-231 |
|
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
|
4 |
232 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
233-234 |
|
अंतर्मु. |
गुणस्थान परिवर्तन |
3 अंतर्मु.कम 55 पल्य |
अविवक्षित वेदी 55 पल्य आयु वाली देवियों में उपज, अंतर्मु.से पर्याप्ति पूरीकर सम्यक्त्वी हुआ। |
|
5 |
235 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
235 |
|
अंतर्मु. |
गुणस्थान परिवर्तन |
2मास+मुहूर्त.पृथक्त्व कम 1को.पूर्व |
28/ज स्त्री वेदी मर्कट आदिक में उपजा/2 मास गर्भ में रहा। निकलकर मुहूर्त पृथक्त्व से संयतासंयत हो रहा (ओघ में सम्मूर्च्छिन का ग्रहण किया है) |
|
6-9 |
235 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
235 |
|
अंतर्मु. |
–मूलोघवत् |
— |
— |
पुरुष वेद |
1 |
236 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
237-238 |
|
अंतर्मु. |
स्त्रीवेदवत् |
सागरशत पृथक्त्व |
स्त्रीवेदवत् |
|
2-4 |
239 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
239 |
|
|
|
|
|
|
5 |
239 |
— |
स्त्रीवेदवत् |
— |
— |
|
|
|
|
|
|
|
|
6-9 |
239 |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
|
|
|
|
|
|
|
नपुंसक वेद |
1 |
240 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
241-242 |
|
अंतर्मु. |
स्त्रीवेदवत् |
असं.पु.परिवर्तन |
स्त्रीवेदवत् |
|
2-3 |
243-244 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
243-244 |
|
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
|
4 |
245 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
246-247 |
|
अंतर्मु. |
स्त्रीवेदवत् |
6 अंतर्मु. कम 33 सागर |
28/ज.7वी पृथिवी में जा 6 मुहूर्त पीछे पर्याप्त व विशुद्ध हो सम्यक्त्व को प्राप्त हुआ। |
|
5-9 |
248 |
— |
— |
मूलोधवत् |
— |
— |
248 |
|
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
अपगत वेदी |
10-14 |
249 |
|
|
मूलोधवत् |
|
|
249 |
|
|
मूलोधवत् |
|
|