ऋजुमति
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
महाबंध 1/2/24/4 यं तं उजुमदिणाणं तं तिविधं-उज्जुगं मणोगदं जाणदि। उज्जुगं वचिंगदं जाणदि। उज्जुगं कायगदं जाणदि। = जो ऋजुमति ज्ञान है, वह तीन प्रकार का है। वह सरल मनोगत पदार्थ को जानता है, सरल वचनगत पदार्थ को जानता है, सरल कायगत पदार्थ को जानता है।
देखें मन:पर्यय 2.1।
पुराणकोष से
(1) चारण ऋद्धिधारी एक मुनि । इन्होंने प्रीतिंकर सेठ को गृहस्थ और मुनिधर्म का स्वरूप समझाया था । महापुराण 76. 350-354
(2) मन:पर्ययज्ञान का पहला भेद । यह अवधिज्ञान की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म पदार्थ को जानता है । अवधिज्ञान यदि परमाणु को जानता है तो यह उसके अनंतवें भाग को जान लेता है । गौतम गणधर ऋजुमति और विपुलमति दोनों प्रकार के मन:पर्ययज्ञान के धारक थे । महापुराण 2.68, हरिवंशपुराण 10. 153
(3) सात नयों में चौथा पर्यायार्थिक नय । यह पदार्थ के विशिष्ट स्वरूप को बताता है । यह नय पदार्थ की भूत-भविष्यत् रूप वक्रपर्याय को छोड़कर वर्तमान रूप सरल पर्याय को ही ग्रहण करता है । हरिवंशपुराण 58.41-42, 46