हनुमान
From जैनकोष
- मानुषोत्तरपर्वतस्थ वज्रकूट का स्वामी भवनवासी सुपर्णकुमार देव- देखें - लोक / ५ / १० ।
- प.पु./सर्ग/श्लोक पूर्वभव सं.६ में दमयन्त, पाँचवें स्वर्ग में देव (१७/१४२-१४८) चौथे में सिंहचन्द्र नामक राजपुत्र (१७/१५१) तीसरे स्वर्ग में देव (१७/१५२) दूसरे में सिंहवाहन राजपुत्र (१७/१५४) और पूर्वभव में लान्तव स्वर्ग में देव था (१७/१६२) वर्तमान भव में पवनंजय का पुत्र था (१७/१६४,३०७)। क्योंकि विमान में से पाषाण शिला पर गिरने पर इसने पत्थर को चूर्ण-चूर्ण कर दिया इसलिए इनका नाम श्रीशैल भी था। (१७/४०२) रामायण युद्ध में राम की बहुत सहायता की। अन्त में मेरु की वन्दना को जाते समय उल्कापात से विरक्त होकर दीक्षा ले ली (११२/७६); (११३/३२); तथा क्रम से मोक्ष प्राप्त किया (१११/४४-४५)।