मृगचूल
From जैनकोष
राम-लक्ष्मण के भ्रातृ-स्नेह का परीक्षक सौधर्म स्वर्ग का एक देव । यह रत्नचूल देव को साथ लेकर अयोध्या आया था । वहाँ इसने राम के भवन में दिव्य माया से अंत:पुर की स्त्रियों के रुदन की विक्रिया से आवाज की । इससे द्वारपाल, मंत्री और पुरोहितों ने लक्ष्मण को राम की मृत्यु के समाचार कहे । लक्ष्मण राम का मरण जानकर सिंहासन पर बैठे-बैठे ही निरुप्राण हो गया । लक्ष्मण को निर्जीव देखकर यह बहुत व्याकुलित हुआ । लक्ष्मण को जीवित करने में समर्थ न हो सकने पर ‘लक्ष्मण की इसी विधि से मृत्यु होनी होगी’ ऐसा विचार कर यह देव अपने साथी रत्नचूल के साथ सौधर्म स्वर्ग लौट गया था । पद्मपुराण 115. 2-15