दूरापकृष्टि
From जैनकोष
- दूरापकृष्टि सामान्य व लक्षण
ला.सा./जी.प्र./१२०/१६१/९ पल्ये उत्कृष्टसंख्यातेन भक्ते यल्लब्धं तस्मादेकैकहान्या जघन्यपरिमितासंख्यातेन भक्ते पल्ये यल्लब्धं तस्मादेकोत्तरवृद्धया यावन्तो विकल्पास्तावन्तो दूरापकृष्टिभेदा:। =पल्य को उत्कृष्ट असंख्यात का भाग दिये जो प्रमाण आवै तातै एक एक घटता क्रम करि पल्यकौ जघन्य परीतासंख्यात का भाग दिये जो प्रमाण आवै तहा पर्यन्त एक-एक वृद्धि के द्वारा जितने विकल्प हैं, ते सब दूरापकृष्टि के भेद हैं। - दूरापकृष्टि स्थिति बन्ध का लक्षण
क्ष.सा./भाषा/४१९/५००/१५ पल्य/असं.मात्र स्थितिबन्ध को दूरापकृष्टि नाम स्थितिबन्ध कहिये।