दूरार्थ
From जैनकोष
न्यायदीपिका/2/22/41/9 दूरा (अर्था:) देशविप्रकृष्टा मेर्वादय:। =दूर वे हैं जो देश से विप्रकृष्ट हैं, जैसे मेरु आदि। अर्थात् जो पदार्थ क्षेत्र से दूर हैं वे दूरार्थ कहलाते हैं। पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/484 दूरार्था भाविनोऽतीता रामरावणचक्रिण:। =भूत भविष्यत कालवर्ती राम, रावण, चक्रवर्ती आदि काल की अपेक्षा से अत्यंत दूर होने से दूरार्थ कहलाते हैं।