वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1001
From जैनकोष
कषायवैरिब्रजनिर्जयं यमी करोतु पूर्वं यदि संवृतेंद्रिय:।
किलानयोर्निग्रहलक्षणो विधिर्न हि क्रमेणात्र बुधैर्विधीयते।।1001।।
संवृतेंद्रिय पुरुष के कषायवैरिविजय का विधान―यदि कोई योगी पुरुष इंद्रिय विषयों को नियंत्रित कर सका है, इंद्रियसम्वरण कर पाया है तो वह कषायबैरियों के समूह पर विजय प्राप्त करे। क्यों जी, किस कषाय पर पहिले विजय प्राप्त करना चाहिए? वैसे कषाय के विजय करने का बहुत बड़ा काम हम आपको करने को पडा है ना? तो सिलसिले से करने की बात होना चाहिए। यदि सभी कषायों पर इकट्ठे ही विजय प्राप्त करें तो वह तो बहुत बड़ा काम हो जायगा। तो पहिले कौनसी कषायों पर विजय करना चाहिए। यदि कहो कि क्रोध पर विजय करें तो अभी मान, माया, लोभ आदि को सहूलियत मिली है क्या? और यदि लोभ कषाय पर विजय नहीं किया तो फिर क्रोध तो आयगा ही। पहिले किस कषाय पर विजय प्राप्त करें। इसका कोई सही-सही उत्तर नहीं है। क्योंकि इसमें यह निर्णय ही नहीं है कि पहिले इस कषाय को तो दूर कर लें, बाकी कषायें फिर दूर करेंगे। अरे चाहे जैसे बने, चारों कषायों पर एक साथ विजय प्राप्त करना चाहिये। अपने चित्त में एक यह निर्णय रखें कि ये चारों की कषायें मेरे लिए बैरी हैं, इन पर मुझे विजय करना है। एक बात दूसरी यह है कि इस जीव का अहित करने वाले भाव है विषय और कषाय। इनका हम किस प्रकार विजय प्राप्त करें? कोई उत्तर देगा कि पहिले विषयों पर विजय करें। उस प्रकरण में भी यही ही बात कही जा रही है कि इंद्रियविषय को जीते बिना कषायों का उपशम नहीं किया जा सकता। तो लो पहिला काम इंद्रियविषयके विजय का है, अच्छा तो कषायों की ओरसे उपेक्षा कर दो, कषायविजय पीछे कर लेंगे मगर देखो कषायों पर विजय कुछ भी न हो तो क्या इंद्रियविषयों पर विजय की जा सकती है? जब लोभ ही कम नहीं कर सकते तो विषय विजय कैसे हो सकता है? अच्छा चलो पहिले कषायों पर विजय कर लें, हम जरा कषायों को नियंत्रित कर दें, जरा उन पर काबू पा लें, फिर हम इंद्रियविषयों पर विजय करेंगे। तो लो अगर इंद्रिय विषयों के विजय की उपेक्षा की तो कोई विषय संस्कार तो हमारे कषाय संस्कार का कारण बन रहा, तो क्या करना? निर्णय यह रखें कि विषय और कषाय दोनों ही भाव मेरे बैरी हैं। हमें तो दोनों पर एक साथ विजय करना है। तो इस निर्णय के बाद जैसी घटना आ जाय, जैसी परिस्थिति आये, उनमें जो प्रमुख विजय की बात बना करे, बने, लेकिन चित्त में यह बात बनायें कि समस्त विषय और समस्त कषायें इन पर मुझे विजय करना है और इसी का मुझे पौरुष करना है।