सुषेण
From जैनकोष
- वरांग चरित्र/सर्ग/श्लोक वरांग का सौतेला भार्इ था। (११/८५)। वरांग को राज्य मिलने पर कुपित हो, वरांग को छल से राज्य से दूर भेज स्वयं राज्य प्राप्त किया (२०/७)। फिर किसी शत्रु से युद्ध होने पर स्वयं डरकर भाग गया (२०/११)।
- म.पु./५८/श्लोक कनकपुर नगर का राजा था (६१)। गुणमंजरी नृत्यकारिणी के अर्थ भाई विन्ध्यशक्ति से युद्ध किया। युद्ध में हार जाने पर नृत्यकारिणी इससे बलात्कार पूर्वक छीन ली गयी (७३)। मानभंग से दु:खित हो दीक्षा लेकर कठिन तप किया। अन्त में वैर पूर्वक मरकर प्राणत स्वर्ग में देव हुआ (७८-७९)। यह द्विपृष्ठ नारायण का पूर्व का दूसरा भव है।-देखें - द्विपृष्ठ।