GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 127 - टीका हिंदी
From जैनकोष
सल्लेखना को ग्रहण करने वाला आहारादि को इस क्रम से छोड़े- पहले कवलाहाररूप दाल-भात, रोटी आदि आहार को छोड़े और दूध आदि स्निग्धरूप पेय पदार्थों को ग्रहण करे । पश्चात् उसे भी छोडक़र खरपान-चिकनाई से रहित पेय पदार्थों कांजी, छाछ आदि को ग्रहण करे । फिर उसे भी छोडक़र केवल गर्म जल ग्रहण करे ।