GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 6 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यहाँ पाँच अस्तिकायों को तथा काल को द्रव्य-पना कहा है ।
द्रव्य वास्तव में सहभावी गुणों को तथा क्रमभावी पर्यायों को अनन्य-रूप से आधार-भूत है । इसलिए जो वर्त चुके हैं, वर्त रहे हैं और भविष्य में वर्तेंगे उन भावों-पर्यायों-रूप परिणमित होने के कारण (पाँच) अस्तिकाय और परिवर्तन-लिंग काल (वे छहों) द्रव्य हैं । भूत, वर्तमान और भावी भाव-स्वरूप परिणमित होने से वे कहीं अनित्य नहीं है, क्योंकि भूत, वर्तमान और भावी भावरूप अवस्थाओं में भी प्रतिनियत (अपने-अपने निश्चित) स्वरूप को नहीं छोड़ते, इसलिए वे नित्य ही हैं ।
यहाँ काल, पुद्गलादि के परिवर्तन का हेतु होने से तथा पुद्गलादि के परिवर्तन से पर्याय गम्य (ज्ञात) होती है इसलिए उसका अस्तिकायों में समावेश करने के हेतु उसे *परिवर्तन-लिंग कहा है । (पुद्गलादि अस्तिकायों का वर्णन करते हुए उनके परिवर्तन / परिणमन का वर्णन करना चाहिए । और उनके परिवर्तन का वर्णन करते हुए उन परिवर्तन में निमित्त-भूत पदार्थ का, काल का, अथवा उस परिवर्तन द्वारा जिनकी पर्यायें व्यक्त होती है उस पदार्थ का, काल का, वर्णन करना अनुचित नहीं कहा जा सकता । इस प्रकार पन्चास्तिकाय के वर्णन में काल के वर्णन का समावेश करना उचित नहीं है ऐसा दर्शाने के हेतु इस गाथा-सूत्र में काल के लिए 'परिवर्तन-लिंग' शब्द का उपयोग किया है ) ॥६॥
*परिवर्तन-लिंग=पुद्गलादि का परिवर्तन जिसका लिंग है, वह पुद्गलादि के परिणमन द्वारा जो ज्ञात होता है वह