GP:प्रवचनसार - गाथा 82 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[सव्वे वि य अरहंता] - और सभी अरहन्त [तेण विधाणेण] - द्रव्य-गुण-पर्याय द्वारा पहले अरहन्त को जानकर बाद में वैसे ही अपने आत्मा में स्थितिरूप-लीनतारूप - उस पूर्वोक्त प्रकार से [खविदकम्मंसा] - विविध कर्मों से रहित होकर [किच्चा तधोवदेसं] - हे भव्यों! निश्चय रत्नत्रयात्मक शुद्धात्मा की प्राप्ति लक्षण यह ही मोक्षमार्ग है, दूसरा नहीं है - ऐसा उपदेश देकर [णिव्वादा] - अक्षय-अनन्त सुख से तृप्त हुये हैं - मुक्त हुये हैं [ते] - वे अरहन्त भगवान । [णमो तेसिं] - इसप्रकार मोक्षमार्ग का निश्चय करके, मोक्ष और मोक्ष-मार्ग - उन दोनों के इच्छुक ('श्री कुंदकुंदाचार्यदेव') उस निज शुद्धात्मानुभूति स्वरूप मोक्षमार्ग तथा उसके उपदेशक अरहंतों को 'उन्हें नमस्कार हो' इस पद द्वारा नमस्कार करते हैं -- यह अभिप्राय है ।