वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1138
From जैनकोष
रागादिवैरिण: क्रूरांमोहभूपेंद्रपालितां।
निकृत्य शमशस्त्रेण मोक्षमार्गं निरूपय।।1138।।
प्रशमशस्त्र से रागादिवैरियों का विनाश करके मोक्षमार्ग का अवलोकन करने का संदेश:―ये रागादिक भाव जीव के बैरी हैं। जीव के शांति धन को नष्ट करने वाले ये रागादिक विकार ही इस मोह राजा के द्वारा पाले गए हैं अर्थात् रागादिक विकारों की जड़ मोहभाव है। मोह से पाले गए ये रागादिक वैराग्य से, शांत भावरूप शस्त्र से छेदन करके हे आत्मन् !मोक्षमार्ग का अवलोकन कर। यदि शांति चाहता है तो ऐसी ज्ञानदृष्टि बना कि ये रागादिक बैरी उद्दंड न हो सकें। खूब भली प्रकार से अपने आपमें निगरानी करके परख लो।रागादिक विकारों के ही कारण जीवों को क्लेश है। और इस संबंध में विशेष युक्ति क्या देना? अपने आपके ही अंदर परख लो, यदि किसी भी प्रकार का कष्ट है तो वह किसी विषय में रागविकार होने के कारण है। दूसरी कोई बात ही नहीं है। अब उन रागादिक विकारों को दूसरा कौन दूर करेगा? खुद के ही योग्य भावों के द्वारा ये रागादिक दूर किये जा सकते हैं। इन रागादिकों को दूर करें और मोक्ष मार्ग का अवलोकन करें।