प्रभु गुन गाय रै, यह औसर फेर न पाय रे: Difference between revisions
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जग में जीवन थोरा, रे अज्ञानी जागि ।।टेक ।।<br> | |||
जनम ताड़ तरुतैं पड़ै, फल संसारी जीव ।<br> | |||
मौत महीमैं आय हैं, और न ठौर सदीव ।।१ ।।जगमें .।।<br> | |||
गिर-सिर दिवला जोइया, चहुंदिशि बाजै पौन ।<br> | |||
बलत अचंभा मानिया, बुझत अचंभा कौन ।।२ ।।जगमें .।।<br> | |||
जो छिन जाय सो आयुमैं, निशि दिन ढूकै काल ।<br> | |||
बाँधि सकै तो है भला, पानी पहिली पाल ।।३ ।।जगमें .।।<br> | |||
मनुष देह दुर्लभ्य है, मति चूकै यह दाव ।<br> | |||
भूधर राजुल कंतकी, शरण सिताबी आव ।।४ ।।जगमें .।।<br> | |||
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Revision as of 13:06, 9 February 2008
(राग ख्याल)
जग में जीवन थोरा, रे अज्ञानी जागि ।।टेक ।।
जनम ताड़ तरुतैं पड़ै, फल संसारी जीव ।
मौत महीमैं आय हैं, और न ठौर सदीव ।।१ ।।जगमें .।।
गिर-सिर दिवला जोइया, चहुंदिशि बाजै पौन ।
बलत अचंभा मानिया, बुझत अचंभा कौन ।।२ ।।जगमें .।।
जो छिन जाय सो आयुमैं, निशि दिन ढूकै काल ।
बाँधि सकै तो है भला, पानी पहिली पाल ।।३ ।।जगमें .।।
मनुष देह दुर्लभ्य है, मति चूकै यह दाव ।
भूधर राजुल कंतकी, शरण सिताबी आव ।।४ ।।जगमें .।।