योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 498
From जैनकोष
कषाय के अभाव से सिद्धदशा की प्राप्ति -
कल्मषाभावतो जीवो निर्विकारो विनिश्चल: ।
निर्वात-निस्तरङ्गाब्धि-समानत्वं प्रपद्यते ।।४९९।।
अन्वय : - कल्मषाभावत: जीव: निर्वात-निस्तरङ्गाब्धि-समानत्वं निर्विकार: विनिश्चल: प्रपद्यते ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार वायु तथा तरंग के अभाव से समुद्र-निर्विकार तथा निश्चल/स्थिर होता है; उसीप्रकार मिथ्यात्व एवं कषायरूप कल्मष के अभाव से मोक्षमार्गस्थ आत्मा निर्विकार एवं निश्चल होता है अर्थात् सिद्धपरमात्मा हो जाता है ।