योगसार - जीव-अधिकार गाथा 15
From जैनकोष
मिथ्यात्व का स्वरूप -
अतत्त्वं मन्यते तत्त्वं जीवो मिथ्यात्वभावित: ।
अस्वर्णीक्षते स्वर्णं न किं कनकमोहित: ।।१५।।
अन्वय :- मिथ्यात्वभावित: जीव: अतत्त्वं तत्त्वं मन्यते (यथा) कनकमोहित: (जीव:) किं अस्वर्णं स्वर्णं न ईक्षते ? (अर्थात् ईक्षते एव) ।
सरलार्थ :- मिथ्यात्व से प्रभावित हुआ जीव अतत्त्व को तत्त्व मानता है । धतूरे से मोहित प्राणी क्या अस्वर्ण को स्वर्णरूप में नहीं देखता ? अर्थात् देखता ही है ।