वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1247
From जैनकोष
सकलभुवनपूज्यं वीरवर्गोपसेव्यं, स्वजनधनसमृद्धं रत्नरामाभिरामम्।
अमितविभवसारं विश्वभोगाधिपत्यं, प्रबलरिपुकुलांतं हंत कृत्वा मयाप्तम्।।1247।।
देखो जो समस्त भुवनों के जीवों से पूज्यनीय है, बड़े-बड़े योद्धावों के द्वारा जो सेवनीय हैं, कुटुंब से श्यान्य आदिक से जो परिपूर्ण है वह रत्न आदिक से सुंदर है, अमर्यादिक विभव में सारभूत है ऐसे समस्त वैभव को प्राप्त करके उसमें अहंकार करे तो यह विषयसंरक्षणानंद रौद्रध्यान में शामिल है। कुछ सुनकर ज्यादा बुरा न मालूम होता होगा, क्योंकि विषयसंरक्षणानंद गृहस्थ लोग रात दिन करते ही हैं और अन्य बातें भी होती रहती हैं लेकिन यह सब आशय का फर्क है। जिंदगी का लक्ष्य क्या है? इसका जिसके भली प्रकार निर्णय नहीं हुआ वह तो कुपथ पर गिर जाता है और जिसको अपने लक्ष्य का विशिष्ट निर्णय हुआ है, परिस्थितिवश रहना पड़ता है घर में फिर भी अपने परिणाम सावधान रखता है। तो ऐसे मौके आते हैं कि परिग्रह जोड़ने के लिए, धन कमाने के लिए ऐसी बहुत सी क्रियाएँ करनी पड़ती हैं लेकिन परपदार्थों की ओर दृष्टि लगाकर अपने प्रभु को जो भूल जाते हैं इस बात पर कुछ खेद होना चाहिए।