वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2022
From जैनकोष
अत: सम्यक्स विज्ञेय: परित्यज्यान्यशासनम ।
युक्त्यागमविभागेन ध्यातुकामैर्मनीषिभ: ।।2022।।
विशुद्धध्यानार्थी की देव, शास्त्र, गुरु व तत्त्व के निर्णय की प्रथम आवश्यकता―जो मुक्ति की अभिलाषा रखता है, जो परमध्यान की कामना रखता है, जो उत्कृष्ट तत्व है, शरणभूत है उसकी उपासना की इच्छा रखता है उस पुरुष को तो मोहियों के शासन को छोड़कर, मोहियों की उस रागवर्द्धक प्रणाली को तजकर वीतराग मार्ग अंगीकार करके शुद्ध बनना चाहिए । वे वीतराग सर्वज्ञ प्रभु ही हम आपके आदर्श हैं । देव, शास्त्र, गुरु―इन तीनों का आलंबन लिए बिना हमारी प्रगति नहीं हो सकती । हम अपना देव किसे माने, यह तो निर्णय करें? जो रागद्वेष जन्म मरण आदिक विडंबनाओं से मुक्त हुए हैं वे हमारे देव हैं, स्वयं ज्ञानानंद हो, केवल रह जाय तो बस जो केवल हो, जो निरंतर ज्ञानानंद में लीन हो वह हमारा आदर्श है । वहीं दृष्टि दे कि मुझे यह बनना है, वह तो है देव, और ऐसा बनने की जो प्रेरणा देते हैं ऐसे सद्वचन, वे हैं शास्त्र । इस प्रकार बनने में जो लग रहे हैं वीतराग होने की जो अपनी साधना बना रहे हैं ऐसे निर्ग्रंथ तपस्वी ज्ञानध्यानरत महापुरुष वे हमारे गुरु हैं । तो सच्चे देव, शास्त्र, गुरू का निर्णय करिये आत्मा के नाते । अपने आपको किसी मजहब वाला मत मानो । आत्महित के नाते ही सारा निर्णय किया जाय तो उस पथ का हमें दर्शन होगा और हम वहाँ अपना निभाव कर सकेंगे । इस आत्महित की इच्छा रखने वाले भव्य जन अपने आदर्श का सही निर्णय करें कि हमें क्या बनना है? वीतराग सर्वज्ञ सकलपरमात्मा जैसे हुए हैं उस मार्ग से चले । उस ज्ञानानंदस्वरूप का ध्यान करें तो हम में भी शुद्धि होगी, और यह शुद्धि बढ़-बढकर उतनी ही वीतराग अवस्था बन सकेगी जो वीतराग सिद्ध प्रभु की है । जैसे सर्व संकटो से छुटकारा सिद्ध प्रभु का है वैसे ही सर्व संकटों से छूटकारा हम आप भी प्राप्त कर सकेंगे ।