वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 581
From जैनकोष
गुरवो लाघवं नीता गुणिनोऽप्यत्र खंडिता:।
चौरसंश्रयदोषेण यतयो निधनं गता:।।
चोर संसर्ग से लघुता- चोरपुरुष कीसंगति से बड़े-बड़ेमहापुरुष भी लघुता को प्राप्त हो गए और गुणी पुरुष खंडित किए गए और मुनिजन चोर के संसर्ग से मारे भी गए। जहाँ चोर का निवास हो या जिस जगह साधु विराजे हों वहीं चोर भी रहता हो तो चोरी के संसर्ग से उन साधुवों पर भी आपत्ति आ सकती है। होती है ना ऐसी कल्पना कि ये भी इसी में शामिल होंगे और इसी के छिपाने के लिए इन्होंने यह भेष रख लिया होगा। तो साधुजन भी गिरफ्तार किए जा सकते हैं। तो जो चोरी करने अथवा अन्य प्रकार से भी दुष्ट प्रकृति रखते हों उनका संसर्ग भी दोष को उत्पन्न करता है। तो सत्संगति की भी बड़ी सावधानी रहनी चाहिए।
स्वाध्याय और सत्संगति का विशेष कर्तव्य- हम आपको करने के लिए दो ही तो काम खास पड़े हुए हैं। व्यवहार की बात कह रहे हैं कि स्वाध्याय आदिक से ज्ञानार्जनकरना और सत्संगति करना यह व्यवहारधर्म पंथ चलाने के लिए और आत्मा की सच्ची समझ लेने के लिए ये दो कर्तव्य पड़े हुए हैं। केवल एक धन के व्यामोह में ही अपने इस जीवन को न गंवाया जाय। उसे ही मुख्य काम न समझा जाय। इतना ज्ञान उत्पन्न करना ही चाहिए, नहीं तो मनुष्य होकर कार्य क्या किया? मेरा मुख्य काम तो धर्मसाधना का है और यह काम भाग्य के अनुसार होता है। जो परिस्थिति होगी उसी में ही गुजारा किया जा सकता है यह तो गुजारे के लिए है, पर धर्म की बात न होगी तो यह आत्मा के भव-भव के संकट के लिए है। अतएव इस परिग्रह से व्यामोह कम करना और धर्म के पंथ में लगने का उत्साह भरना यही करने का हम आप सबका कार्य है।