वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 594
From जैनकोष
नाल्पसत्तवैर्न नि:शीलैर्न दीनैर्नाक्षनिर्जितै:।
स्वप्नेऽपि चरितुं शक्यं ब्रह्मचर्यमिदं नरै:।।
मैथुनप्रकारों की संख्या- ब्रह्मचर्य व्रत का प्रतिपक्षी भाव है मैथुन, कामसेवन। यह एक स्त्रीसंग का ही नाम नहीं, किंतु वह भी है और इसके पहले भी 10 प्रकार के भाव होते हैं, वे सब भी कामसंबंधी भाव समझना। इस कारण जो पुरुष स्त्री से विरक्त हैं अथवा जो स्त्री शीलसंपन्न हैं उन सबको 10 प्रकार के कामसेवनों का परित्याग करना चाहिए। वे 10 मैथुन प्रकार क्या क्या हैं? इसका वर्णन कर रहे हैं।