वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 64
From जैनकोष
क्षणिकत्वं वदंत्यार्या घटीघातेन भूभृताम्।
क्रियतामात्मन: श्रेयो गतेयं नागमिष्य त।।64।।
क्षणिकत्व की घोषणा― बड़े-बड़े लोगों के घर दरबारों में, मंदिरों में घंटा बजता है अथवा घड़ी का घंटा बजता है वह शब्द करता हुआ लोगों को यह बता रहा है कि सबका सब क्षणिक है। जो जिस घंटे का समय निकल गया अब वह वापिस नहीं आने का है, ऐसे ही जो जीवन व्यतीत हो गया वह अब वापिस लौटकर न आयेगा। पदार्थ का जो परिणमन निकल गया वह पुन: न आयेगा। जो पदार्थ है उसका नियम से विनाश होगा और जिसका नाश हो गया वह पर्याय फिर लौटकर नहीं आती। दूसरी पर्याय आयेगी। यों सभी पदार्थ क्षणिक हैं ऐसा आचार्य पुरुष कहते हैं। तो यह घंटों का शब्द मानो पुकारकर कह रहा है कि हे जगत् के जीवों ! यदि कुछ अपना कल्याण करना चाहते हो तो शीघ्र कर लो। जो समय गुजर जाता है वह समय पुन: वापिस नहीं आया करता।
व्यतीत काल की अप्राप्ति― भैया ! बीती हुई बला का तो तुम्हें भी ध्यान होगा। जो पीरियड गुजर गया वह पुन: वापिस आता नहीं। प्राय: करके ऐसा होता है कि जब बचपन है तब याद करने की शक्ति अधिक होती है लेकिन बचपन में पढ़ने के प्रति मन नहीं लगता। खेलों की ओर चित्त जाता है। बचपन में थोड़ासा देख लेने पर ही विद्या कंठस्थ हो जाती थी। वह बचपन का समय तो प्रमाद में खो दिया। उस बचपन की अवस्था से कोई लाभ न उठा पाया और जब बड़े हुए, विद्या के चमत्कार की समझ बनी, जो कुछ है सो विद्या है, सो अब तड़फता है कि देखो मैंने बचपन में विद्या सीखने का यत्न नहीं किया।
सरलता कर्मठता व विवेक― यदि बचपन की सरलता, जवानी का बल और बुढ़ापे का विवेक― ये तीनों बातें एक साथ किसी मनुष्य में आ जायें तो वही मनुष्य तो महापुरुष है। बच्चों में सरलता अधिक है, इस कारण उनकी बुद्धि भी स्वच्छ रहती है और बहुत ही जल्दी उन्हें याद हो जाता है। अन्यथा फर्क बतलावो जवान होने पर तो बच्चे से कई गुणा बल मिला है ना। बच्चे तो अनेक बातों को तरसते रहते हैं, बचपन में किसी पर कुछ अधिकार नहीं रहता। कोई भी उसे डाट डपट देता है। जो उस बच्चे को खिलाने के लिये नौकर रखा गया है वह भी उसे कभी-कभी धमका देता है। उससे उस बच्चे को क्या क्लेश नहीं उत्पन्न होता है? क्या उस बच्चे के अंदर यह भावना नहीं जगती कि हम भी ऐसे बड़े होते तो यह क्यों मुझे धुधकारता? कितना बचपन में कष्ट है, पराधीनता है। सब कुछ होकर भी विद्याभ्यास में उन्हें सफलता क्यों मिल जाती है? बड़े होने पर तो बुद्धि बढ़ी, विवेक बढ़ा पर वह स्मरण शक्ति कहाँ चली जाती है। यह स्मरण शक्ति मायाजाल, आसक्ति, रागभाव इनकी प्रमुखता में समाप्त हो जाती है। बच्चों में सरलता है इस कारण उनकी बुद्धि प्रबल रहती है। बचपन की सरलता, जवानी का बल कर्मठता और बुढ़ापे का अनुभव, ये तीन बातें किसी एक पुरुष में आ जायें तो वह पुरुष महनीय हो जाता है। ये समस्त पदार्थ विनाशीक हैं, इनमें प्रीति न करके अपने आत्मा का कल्याण करना हो तो इन सबको यों जानो कि ये सब नष्ट होने वाले हैं, चले जाने के बाद फिर नहीं आते।