वर्णीजी-प्रवचन:रयणसार - गाथा 35
From जैनकोष
खयकुट्ठ मूलसूलो लूय भयंदरजलोयरक्खि सिरो।
सीदुण्हबाहिराई पूयादाणंतराय कम्मफलं।।35।।
पूजा व दान में अंतराय किये जाने का दुष्परिणाम क्षय कुष्ठ शूल आदि की बाधा―अब इस गाथा में बतला रहे कि प्रभु की पूजा अथवा दान में अंतराय करने का क्या फल होता है? किसी विधि से पूजा में अंतराय डाले, दान में अंतराय डाले तो उसको कर्मफल कैसे मिलता है इस बात का वर्णन इस गाथा में किया है क्षय रोग हो जाना, जिसे कहते हैं राजरोग मायने रोगराज, जैसे टीबी या अन्य प्रकार के क्षय की बातें जिसमें धातु उपधातु नष्ट होती रहे, ऐसे क्षय के राग उत्पन्न होते हैं और पूजा व दान में अंतराय डालते हैं। कुष्ट रोग, जिस में अंग गल जाते हैं, चलते नहीं बनता, शरीर में बड़ी पीड़ा होती है, ऐसे बड़े बुरे रोग हो जाना यह अंतराय करने का फल है। अंतराय का भाव ही रखे इतने में ही कर्म का बंध होता है। अंतराय डाल सके या नहीं, यह तो उस के हाथ की बात नहीं है, पर अंतराय से विघ्न करने का भाव मन में आये कि यह कार्य न हो सके पूजा का, अन्य धर्म कार्य का तो इतने मात्र से उसको वैसा खोटा फल होता है कि ऐसे कठिन रोगों का दुःख सहना पड़ता है। सूल रोग सूल, जिसे कहते हैं पेट में गोला उठना, सूल उठना या अन्य प्रकार की वेदना, नसें तड़कती हैं हाथ पैर दर्द करें, ऐसे कठिन-कठिन रोग होना, यह पूजा व दान में अंतराय किए जाने का फल है। पूजा व दान में अंतराय किये जाने का दुष्फल लूता भगंदर जलोदर शीतोष्णादि की बाधायें―मकड़ी भिड़ना उसका रोग ‘मकड़ी है तो छोटा कीट मगर उसका बड़ा विष होता है, शरीर के ऊपर मकड़ी भिड़ जाय तो कहो शरीर में फोड़े पड़ते चले जायें। और, कई जगह तो ऐसी-ऐसी घटनायें हो जाती हैं कि जैसे भोजन पर मकड़ी बैठी हो, मकड़ी मर गई हो, चाहे वह मकड़ी खाने में न आये, पर उस भोजन के खाने से ही मृत्यु तक हो जाती है। इसे बोलते हैं लूता ‘ऐसी भयंकर बातें पूजा और दान में अंतराय किए जाने का फल है। नेत्र-सिर की व्याधि में नेत्रों से न दिखना, नेत्रों में पीड़ा होना यह बहुत कठिन का फल है। इसी प्रकार ठंडी गरमी के विशेष रोग होते जिन रोगों में जीना भी कठिन होता है, ऐसी व्याधियाँ ये सब पूजा और दान में अंतराय किए जाने का फल है। उसकी तो अनुमोदना होनी चाहिए, पर अनुमोदना के बजाय भावों में कोई विरोध की बात आये तो उसके फल में इस प्रकार के कर्म का बंध होता है कि जिस का विपाक ऐसे-ऐसे उपसर्गों के देने का कारण होता है।