GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 65 - टीका हिंदी
From जैनकोष
धनश्री नाम की सेठानी ने हिंसा से बहुत प्रकार का दु:खदायक फल भोगा है। सत्यघोष पुरोहित ने असत्य बोलने से, तापस ने चोरी से और कोतवाल ने ब्रह्मचर्य का अभाव होने से बहुत दु:ख भोगा है। इसी प्रकार श्मश्रुनवनीत नाम के वणिक् ने परिग्रह पाप के कारण बहुत दु:ख भोगा है। अत: ये सब ऊपर बताये हुए क्रम से दृष्टान्त देने के योग्य हैं। उनमें धनश्री हिंसा पाप के फल से दुर्गति को प्राप्त हुई थी। इसकी कथा इस प्रकार है-
धनश्री की कथा
लाटदेशकेभृगुकच्छनगरमेंराजालोकपालरहताथा।वहींपरएकधनपालनामकासेठरहताथा।उसकीस्त्रीकानामधनश्रीथा।धनश्रीजीवहिंसासेकुछभीविरतनहींथीअर्थात्निरन्तरजीवहिंसामेंतत्पररहतीथी।उसकीसुन्दरीनामकीपुत्रीऔरगुणपालनामकापुत्रथा।जबधनश्रीकेपुत्रनहींहुआथा, तबउसनेकुण्डलनामकएकबालककापुत्रबुद्धिसेपालन-पोषणकियाथा।समयपाकरजबधनपालकीमृत्युहोगयी, तबधनश्रीउसकुण्डलकेसाथकुकम्रकरनेलगी।इधरधनश्रीकापुत्रगुणपालजबगुणऔरदोषोंकोजाननेलगातबउससेशंकितहोकरधनश्रीनेकुण्डलसेकहाकिमैंगोखरमेंगायेंचरानेकेलिएगुणपालकोजंगलभेजूंगी, सोतुमउसकेपीछेलगकरउसेवहाँमारडालो, जिससेहमदोनोंकास्वच्छन्दरहनाहोजायेगा- कोईरोक-टोकनहींरहेगी।यहसबकहतेहुएमाताकोसुन्दरीनेसुनलिया, इसलिएउसनेअपनेभाईगुणपालसेकहदियाकिआजरात्रिमेंगोधनलेकरगोखरमेंमातातुम्हेंजंगलभेजेगीऔरवहाँकुण्डलकेहाथसेतुम्हेंमरवाडालेगी, इसलियेतुम्हेंसावधानरहनाचाहिए।
धनश्रीनेरात्रिकेपिछलेपहरमेंगुणपालसेकहाहेपुत्र! कुण्डलकाशरीरठीकनहींहै, इसलिएआजतुमगोखरमेंगोधनलेकरजाओ।गुणपालगोधनकोलेकरजंगलगयाऔरवहाँएककाष्ठकोकपड़ेसेढककरछिपकरबैठगया।कुण्डलनेआकर‘यहगुणपालहै’ऐसासमझकरवस्त्रसेढकेहुएकाष्ठपरप्रहारकिया।उसीसमयगुणपालनेतलवारसेउसेमारडाला।जबगुणपालघरआया, तबधनश्रीनेपूछाकिरेगुणपाल! कुण्डलकहाँहै? गुणपालनेकहाकिकुण्डलकीबातकोयहतलवारजानतीहै।तदनन्तरखूनसेलिप्तबाहुकोदेखकरधनश्रीनेउसीतलवारसेगुणपालकोमारदिया।भाईकोमारतेदेखसुन्दरीनेउसेमूसलसेमारनाशुरूकिया।इसीबीचकोलाहलहोनेसेकोतवालनेधनश्रीकोपकडक़रराजाकेआगेउपस्थितकिया।राजानेउसेगधेपरचढ़ायातथाकान, नाकआदिकटवाकरदण्डितकिया, जिससेमरकरवहदुर्गतिकोप्राप्तहुई।इसतरहप्रथमअव्रतसेसम्बद्धकथापूर्णहुई।
सत्यघोषअसत्यबोलनेसेबहुतदु:खकोप्राप्तहुआथा।इसकीकथाइसप्रकारहै-
सत्यघोषकीकथा
जम्बूद्वीपकेभरतक्षेत्रसम्बन्धीसिंहपुरनगरमेंराजासिंहसेनरहताथा।उसकीरानीकानामरामदत्ताथा।उसीराजाकाएकश्रीभूतिनामकापुरोहितथा।वहजनेऊमेंकैंचीबांधकरघूमाकरताथाऔरकहताथाकियदिमैंअसत्यबोलूं, तोइसकैंचीसेअपनीजिह्वाकाछेदकरलूं।इसतरहकपटसेरहतेहुएउसपुरोहितकानामसत्यघोषपड़गया।लोगविश्वासकोप्राप्तहोकरउसकेपासअपनाधनरखनेलगे।वहउसधनमेंसेकुछतोरखनेवालोंकोदेदेताथा, औरबाकीस्वयंग्रहणकरलेताथा।लोगरोनेसेडरतेथेऔरकोईरोताभीथातोराजाउसकीसुनताहीनहींथा।
तदनन्तरएकसमयपद्मखण्डनगरसेएकसमुद्रदत्तनामकासेठआया।वहवहाँसत्यघोषकेपासअपनेपाँचबहुमूल्यरत्नरखकरधनउपार्जितकरनेकेलिएदूसरेपारचलागयाऔरवहाँधनोपार्जनकरकेजबलौटरहाथा, तबउसकाजहाजफटगया।काठकेएकपाटियेसेवहसमुद्रकोपारकररखेहुएमणियोंकोप्राप्तकरनेकीइच्छासेसिंहपुरमेंसत्यघोषकेपासआया।रङ्ककेसमानआतेहुएउसेदेखकरउसकेमणियोंकोहरनेकेलिएसत्यघोषनेविश्वासकीपूर्तिकेलिएसमीपबैठेहुएलोगोंसेकहाकियहपुरुषजहाजफटजानेसेपागलहोगयाहैऔरयहाँआकरमणिमांगेगा।उससेठनेआकरउसीप्रकारकहाकिहेसत्यघोषपुरोहित! मैंधनकमानेकेलिएगयाथा।धनोपार्जनकरनेकेबादमेरेऊपरबड़ासंकटआपड़ाहै, इसलिएमैंनेजोरत्नतुम्हेंरखनेकेलिएदियेथे, वेरत्नकृपाकरमुझेदेदीजिये।जिससेजहाजफटजानेकेकारणनिर्धनताकोप्राप्तमैंअपनाउद्धारकरसकूँ।उसकेवचनसुनकरकपटीसत्यघोषनेपासमेंबैठेहुएलोगोंसेकहाकिदेखो, मैंनेपहलेआपलोगोंसेबातकहीथी, वहसत्यनिकली।लोगोंनेकहाकिआपहीजानतेहैं, इसपागलकोइसस्थानसेनिकालदियाजावे।ऐसाकहकरउन्होंनेसमुद्रदत्तकोघरसेनिकालदिया।‘वहपागलहै’ऐसाकहाजानेलगा।‘सत्यघोषनेमेरेपाँचबहुमूल्यरत्नलेलियेहैं’इसप्रकाररोताहुआवहनगरमेंघूमनेलगा।राजभवनकेपासइमलीकेएकवृक्षपरचढक़रवहपिछलीरातमेंरोताहुआयहीकहताथा।यहकरतेहुएउसेछहमाहनिकलआये।
एकदिनउसकारोनासुनकररामदत्तारानीनेराजासिंहसेनसेकहाकिदेव! यहपुरुषपागलनहींहै।राजानेभीकहाकितोक्यासत्यघोषसेचोरीकीसम्भावनाकीजासकतीहै? रानीनेफिरकहाकिदेव! उसकेचोरीकीसम्भावनाहोसकतीहै, क्योंकियहसदायहीबातकहताहै।यहसुनकरराजानेकहाकियदिसत्यघोषपरचोरीकीसम्भावनाहै, तोतुमपरीक्षाकरो।आज्ञापाकररामदत्तानेएकदिनराजाकीसेवाकेलिएआतेहुएसत्यघोषकोबुलाकरपूछाकिआजबहुतदेरसेक्योंआयेहैं? सत्यघोषनेकहाकिआजमेरीब्राह्मणीकाभाईपाहुनाबनकरआयाथा, उसेभोजनकरातेहुएबहुतदेरलगगई।रानीनेफिरकहा- अच्छा! यहाँथोड़ीदेरबैठो, मुझेबहुतशौकहै।आजअक्षक्रीड़ाकरें, जुआखेलें।राजाभीवहींआगयेऔरउन्होंनेकहदियाकिऐसाहीकरो।
तदनन्तरजबजुएकाखेलशुरूहोगया, तबरामदत्तारानीनेनिपुणमतिनामकीस्त्रीसेउसकेकानमेंलगकरकहाकितुम‘सत्यघोषपुरोहितजोकिरानीकेपासबैठाहै, उन्होंनेमुझेपागलकेरत्नमांगनेकेलिएभेजाहै’ऐसाउसकीब्राह्मणीकेआगेकहकरवेरत्नमांगकरशीघ्रलाओ।तदनन्तरनिपुणमतिनेजाकरवेरत्नमांगे, परन्तुब्राह्मणीनेनहींदिये, क्योंकिसत्यघोषनेउसेपहलेहीमनाकररखाथाकिकिसीकेमांगनेपररत्ननहींदेना।निपुणमतिनेआकररानीकेकानमेंकहाकिवहनहींदेतीहै।अनन्तररानीनेपुरोहितकीअंगूठीजीतली।उसेपहिचानकेरूपमेंदेकरनिपुणमतिकोफिरसेभेजा, परन्तुउसनेफिरभीनहींदिये।अबकीबाररानीनेपुरोहितकाकैंचीसहितजनेऊजीतलिया।निपुणमतिनेउसेपहिचानकेरूपमेंदियाऔरदिखाया।उसेदेखकरउसेविश्वासहुआतथा‘यदिरत्ननहींदूंगीतोवेकुपितहोंगे, इसप्रकारभयभीतहोकरब्राह्मणीनेपंचरत्ननिपुणमतिकोदेदियेऔरउसनेलाकररानीरामदत्ताकोसौंपदिये।रामदत्तानेराजाकोदिखाये।राजानेउनरत्नोंकोऔरबहुतसेरत्नोंमेंमिलाकरउसपागलसेकहाकिअपनेरत्नपहिचानकरउठालो।उसनेअपनेसबरत्नछाँटकरउठालिये, तबराजाऔररानीनेउसेवणिक्पुत्र-सेठमानलियाकिवास्तवमेंयहपागलनहींहै, यहतोवणिक्पुतत्रहै।
तदनन्तरराजानेसत्यघोषसेपूछाकितुमनेयहकार्यकियाहै? उसनेकहाकिदेव! मैंयहकामनहींकरताहूँ।मुझेऐसाकरनाक्यायुक्तहै? तदनन्तरअत्यन्तकुपितहुएराजानेउसकेलिएतीनदण्डनिर्धारितकिये- १. तीनथालीगोबरखाओ, २. पहलवानोंकेतीनमुक्केखाओअथवा३. समस्तधनदेदो।उसनेविचारकरपहलेगोबरखानाप्रारम्भकिया, परजबगोबरखानेमेंअसमर्थरहातबपहलवानोंकेमुक्केसहनकरनाशुरूकिया।किन्तुजबउसमेंभीअसमर्थरहातबसबधनदेनाप्रारम्भकिया।इसप्रकारतीनोंदण्डोंकोभोगकरवहमराऔरतीव्रलोभकेकारणराजाकेखजानेमेंअगन्धनजातिकासांपहुआ।वहाँभीमरकरदीर्घसंसारीहुआ।इसप्रकारद्वितीयअव्रतकीकथापूर्णहुई।
चोरीसेतापसबहुतदु:खकोप्राप्तहुआ, इसकीकथाइसप्रकारहै-
तापसकीकथा
वत्सदेशकीकौशाम्बीनगरीमेंराजासिंहरथरहताथा।उसकीरानीकानामविजयाथा।वहाँएकचोरकपटसेतापसहोकररहताथा।वहदूसरेकीभूमिकास्पर्शनकरताहुआलटकतेहुएसींकेपरबैठकरदिनमेंपञ्चाग्रितपकरताथाऔररात्रिमेंकौशाम्बीनगरीकोलूटताथा।एकसमय‘नगरलुटगयाहै’इसतरहमहाजनसेसुनकरराजानेकोट्टपालसेकहा- ‘रेकोट्टपाल! सातरात्रिकेभीतरचोरकोपकड़लाओयाफिरअपनासिरलाओ।’तदनन्तरचोरकोनपाताहुआकोट्टपालचिन्तामेंनिमग्रहोअपराह्नकालमेंबैठाथाकिकिसीभूखेब्राह्मणनेआकरउससेभोजनमांगा।कोट्टपालनेकहा- ‘हेब्राह्मण! तुमअभिप्रायकोनहींजानते।मुझेतोप्राणोंकासन्देहहोरहाहैऔरतुमभोजनमांगरहेहो?’ यहवचनसुनकरब्राह्मणनेपूछाकितुम्हेंप्राणोंकासन्देहकिसकारणहोरहाहै? कोट्टपालनेकारणकहा।उसेसुनकरब्राह्मणनेफिरपूछा‘यहाँक्याकोईअत्यन्तनिस्पृहवृत्तिवालापुरुषरहताहै?’ कोटपालनेकहाकिविशिष्टतपस्वीरहताहै, परन्तुयहकार्यउसकाहो, ऐसासम्भवनहींहै।ब्राह्मणनेकहाकिवहीचोरहोगा, क्योंकिवहअत्यन्तनि:स्पृहहै।इसविषयमेंमेरीकहानीसुनिये (१) मेरीब्राह्मणीअपनेआपकोमहासतीकहतीहैऔरकहतीहैकिमैंपर-पुरुषकेशरीरकास्पर्शनहींकरती।यहकहकरतीव्रकपटसेसमस्तशरीरकोकपड़ेसेआच्छादितकरअपनेपुत्रकोस्तनदेतीहै- दूधपिलातीहै, परन्तुरात्रिमेंगृहकेवरेदीकेसाथकुकर्मकरतीहै।
(२) यहदेखमुझेवैराग्यउत्पन्नहोगयाऔरमैंमार्गमेंहितकारीभोजनकेलिएसुवर्णशलाकाकोबांसकीलाठीकेबीचरखकरतीर्थयात्राकेलिएनिकलपड़ा।आगेचलनेपरमुझेएकब्रह्मचारीबालकमिलगया।वहहमारेसाथहोगया।मैंउसकाविश्वासनहींकरताथा, इसलिएउसलाठीकीबड़ेयत्नसेरक्षाकरताथा।उसबालकनेताड़लियाअर्थात्उसनेसमझलियाकियहलाठीसगर्भाहैअर्थात्इसकेभीतरकुछधनअवश्यहै।एकदिनवहबालकरात्रिमेंकुम्भकारकेघरसोया।प्रात: वहाँसेचलकरजबदूरआगया, तबमस्तकमेंलगेहुएसड़ेतृणकोदेखकरकपटवशउसनेमेरेआगेकहाकिहाय! हाय! मैंदूसरेकेतृणकोलेआया।ऐसाकहकरवहलौटाऔरउसतृणकोउसीकुम्भकारकेघरपरडालकरसायंकालकेसमयमुझसेआमिला, जबकिमैंभोजनकरचुकाथा।वहबालकजबभिक्षाकेलिएजानेलगा, तबमैंनेसोचाकियहतोबहुतपवित्रहै, इसतरहउसपरविश्वासकरकुत्तेआदिकोभगानेकेलिएमैंनेवहलाठीउसकोदेदी।उसेलेकरवहचलागया।
(३) तदनन्तरमहाअटवीमेंजातेहुएमैंनेएकवृद्धपक्षीकाबड़ाकपटदेखा।एकबड़ेवृक्षपररात्रिकेसमयबहुतपक्षियोंकासमूहएकत्रहुआ।उसमेंअत्यन्तवृद्धपक्षीनेरात्रिकेसमयअपनीभाषामेंदूसरेपक्षियोंसेकहाकिहेपुत्रों! अबमैंअधिकचलनहींसकता।कदाचित्भूखसेपीडि़तहोकरआपलोगोंकेपुत्रोंकाभक्षणकरनेलगंू, इसलिएप्रात:कालआपलोगहमारेमुखकोबाँधकरजाइये।पक्षियोंनेकहाकिहायपिताजी! आपतोहमारेबाबाहैं, आपमेंइसकीसम्भावनाकैसेकीजासकतीहै? वृद्धपक्षीनेकहाकि‘बुभुक्षित: किंनकरोतिपापम्’भूखप्राणीक्यापापनहींकरता? इसतरहप्रात:कालसबपक्षीउसवृद्धकेकहनेसेउसकेमुखकोबाँधकरचलेगये।वहबँधहुआवृद्धपक्षी, सबपक्षियोंकेचलेजानेपरअपनेपैरोंसेमुखबाबन्धनदूरकरउनपक्षियोंकेबच्चोंकोखागयाऔरजबउनकेआनेकासमयहुआतबफिरसेपैरोंकेद्वारामुखमेंबन्धनडालकरकपटसेक्षीणोदरहोकरपड़गया।
(४) अनन्तरमैंएकनगरमेंपहुँचा।वहाँमैंनेचौटाकपटदेखा।वहइसप्रकारहैकिउसनगरमेंएकचोरतपस्वीकारूपरखकरतथादोनोंहाथोंसेमस्तककेऊपरएकबड़ीशिलाकोउठाकरदिनमेंखड़ारहताथाऔररात्रिमें‘जेजीवहटोमैंपैररखरहाहूँ, हेजीवहटोमैंपैररखरहाहूँ’इसप्रकारकहताहुआभ्रमणकरताथा।समस्तभक्तजनउसे‘अपसरजीव’इसनामसेकहनेलगेथे।वहचोरजबकोईगड्ढाआदिएकान्तस्थानमिलतातोसबओरदेखकरसुवर्णसेविभूषितप्रणामकरतेहुएएकाकीपुरुषकोउसशिलासेमारडालताऔरउसकाधनलेलेताथा।इनचारतीव्रकपटोंकोदेखकरमैंनेयहश£ोकबनायाथा।
अबालेति- पुत्रकास्पर्शनकरनेवालीस्त्री, तृणकाघातनकरनेवालाब्राह्मण, वनमेंकाष्ठमुखपक्षीऔरनगरमेंअपसरजीवकयेचारमहाकपटमैंनेदेखेहैं।
ऐसाकहकरतथाकोट्टपालकोधीरजबँधाकरवहब्राह्मणसींकेमेंरहनेवालेतपस्वीकेपासगया।तपस्वीकेसेवकोंनेउसेवहाँसेनिकालनाभीचाहा, परन्तुवहरात्र्यन्धबनकरवहींपड़ारहाऔरएककोनेमेंबैठगया।तपस्वीकेउनसेवकोंने‘यहसचमुचमेंहीरात्र्यन्धहैयानहीं’इसकीपरीक्षाकरनेकेलिएतृणकीकाड़ीतथाअंगुलीआदिउसकेनेत्रोंकेपासचलायी, परन्तुवहदेखताहुआभीनहींदेखतारहा।जबरातकाफीहोगईतबउसनेगुहारूपअन्धकूपमेंरखेजातेहुएनगरकेधनकोदेखाऔरउनलोगोंकेखान-पानआदिकोदेखा।प्रात:कालउसनेजोकुछरात्रिमेंदेखाथा, उसेकहकरराजाकेद्वारामारेजानेवालेकोट्टपालकीरक्षाकी।सींकेमेंबैठनेवालावहतपस्वीउसकोट्टपालकेद्वारापकड़ागयाऔरबहुतभारीयातनाओंसेदु:खीहोताहुआमरकरदुर्गतिकोप्राप्तहुआ।इसप्रकारतृतीयअव्रतकीकथापूर्णहुई।
कुशीलसेवनसेनिवृत्तिनहोनेकेकारणयमदण्डकोतवालनेदु:खप्राप्तकिया।इसकीकथाइसप्रकारहै-
यमदण्डकोतवालकीकथा
आहीरदेशकेनासिक्यनगरमेंराजाकनकरथरहतेथे।उनकीरानीकानामकनकमालाथा।उनकाएकयमदण्डनामकाकोतवालथा।उसकीमाताअत्यन्तसुन्दरीथी।वहयौवनअवस्थामेंहीविधवाहोगईथीतथाव्यभिचारिणीबनगईथी।एकदिनउसकीपुत्रवधूनेउसेरखनेकेलिएएकआभूषणदिया।उसआभूषणकोपहनकरवहरात्रिमेंअपनेपहलेसेसंकेतितजारकेपासजारहीथी।यमदण्डनेउसेदेखाऔरएकान्तमेंउसकासेवनकिया।यमदण्डनेउसकाआभूषणलाकरअपनीस्त्रीकोदेदिया।स्त्रीनेउसेदेखकरकहाकियहआभूषणतोमेराहै, मैंनेरखनेकेलिएसासकेहाथमेंदियाथा।स्त्रीकेवचनसुनकरयमदण्डकोतवालनेविचारकियाकिमैंनेजिसकाउपभोगकियाहै, वहमेरीमाताहोगी।तदनन्तरयमदण्डनेमाताकेजारकेसंकेतगृह (मिलनेकेस्थान) परजाकरउसकापुन: सेवनकियाऔरउसमेंआसक्तहोकरगूढरीतिसेउसकेसाथकुकर्मकरनेलगा।
एकदिनउसकीस्त्रीकोजबयहसहननहींहुआतबउसनेअत्यन्तकुपितहोकरधोबिनसेकहाकिहमारापतिअपनीमाताकेसाथरमणकरताहै।धोबिननेमालिनसेकहा, मालिनकनकमालारानीकीअत्यन्तविश्वासपात्रथी।वहउसकेनिमित्तफूललेकरगयी।रानीनेकुतूहलवशउससेपूछाकिकोईअपूर्वबातजानतीहो? मालिनकोतवालसेद्वेषरखतीथी, अत: उसनेरानीसेकहदियाकिदेवि! यमदण्डकोतवालअपनीमाताकेसाथरमणकरताहै।कनकमालानेयहसमाचारराजासेकहाऔरराजानेगुप्तचरकेद्वाराउसकेकुकर्मकानिश्चयकरकोतवालकोपकड़वाया।दण्डितहोनेपरवहदुर्गतिकोप्राप्तहुआ।
इसप्रकारचतुर्थअव्रतकीकथापूर्णहुई।
परिग्रहपापसेनिवृत्तिनहोनेकेकारणश्मश्रुनवनीतनेबहुतदु:खप्राप्तकिया।इसकीकथाइसप्रकारहै-
श्मश्रुनवनीतकीकथा
अयोध्यानगरीमेंभवदत्तनामकासेठरहताथा।उसकीस्त्रीकानामधनदत्ताथाऔरपुत्रकानामलुब्धदत्तथा।एकबारवहलुब्धदत्तव्यापारकेनिमित्तदूरगया।वहाँउसनेजोधनकमायाथा, वहसबचोरोंनेचुरालिया।तदनन्तरअत्यन्तनिर्धनहोकरवहकिसीमार्गसेआरहाथा।वहाँउसनेकिसीसमयएकगोपालसेपीनेकेलिएछाछमांगी।छाछपीचुकनेपरउसकाकुछमक्खनमूछोंमेंलगगया।उसेदेखउसने‘अरे! यहतोमक्खनहै’यहविचारकरउसेनिकाललियाकिइससेव्यापारहोगा।इसतरहवहप्रतिदिनमक्खनकासंचयकरनेलगा।जिससेउसकाश्मश्रुनवनीतयहनामप्रसिद्धहोगया।
इसप्रकारउसकेपासजबएकप्रस्थप्रमाणघीहोगया, तबवहघीकेबर्तनकोअपनेपैरोंकेसमीपरखकरतथाशीतकालहोनेसेझोंपड़ीकेद्वारपरपैरोंकेसमीपअग्रिरखकरबिस्तरपरपड़गया।वहबिस्तरपरपड़ा-पड़ाविचारकरताहैकिइसघीसेबहुतधनकमाकरमैंसेठहोजाऊँगा, फिरधीरे-धीरेसामन्त-महासामन्त, राजाऔरअधिराजाकापदप्राप्तकरक्रमसेसबकाचक्रवर्तीबनजाऊँगा।उससमयमैंसातखण्डकेमहलमेंशय्यातलपरपड़ारहूँगा।चरणोंकेसमीपबैठीहुईसुन्दरस्त्रीमुट्टीसेमेरेपैरदाबेगीऔरमैंस्नेहवशउससेकहूँगाकितुझेपैरदबानाभीनहींआता।ऐसाकहकरमैंपैरसेउसेताडि़तकरूँगा।ऐसाविचारकरउसनेअपनेआपकोसचमुचहीचक्रवर्तीसमझलियाऔरपैरसेताडि़तकरघीकाबर्तनगिरादिया।उसघीसेद्वारपररखीहुईअग्रिबहुतजोरसेप्रज्वलितहोगयी।द्वारजलनेलगा, जिससेइच्छाओंकेपरिमाणसेरहितवहनिकलनेमेंअसमर्थहोवहींजलकरमरगयाऔरदुर्गतिकोप्राप्तहुआ।
इसप्रकारपञ्चमअव्रतकीकथापूर्णहुई ॥१९॥