मैथुन संज्ञा
From जैनकोष
गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/137/350मैथुने-मिथुनकर्मणि सुरतव्यापाररूपे संज्ञा - वांछा मैथुनसंज्ञा |= मैथुनरूप क्रिया में जो वांछा उसको मैथुनसंज्ञा'' कहते हैं।
पंचसंग्रह / प्राकृत/1/54 पणिदरसभोयणेण य तस्सुवओगेण कुसीलसेवणाए। वेदस्सुदीरणाए मेहुणसण्णा हवदि एवं।54। = बहिरंग में गरिष्ठ, स्वादिष्ठ, और रसयुक्त भोजन करने से, पूर्व-भुक्त विषयों का ध्यान करने से, कुशील का सेवन करने से तथा अंतरंग में वेदकर्म की उदीरणा होने पर मैथुनसंज्ञा उत्पन्न होती है।54।
अधिक जानकारी के लिए देखें संज्ञा ।