रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 102 - अर्थ: Difference between revisions
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Latest revision as of 21:30, 2 November 2022
सामयिके सारम्भाः परिग्रहा नैव सन्ति सर्वेऽपि
चेलोपसृष्टमुनिरिव गृही तदा याति यतिभावम् ॥102॥