रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 10 - टीका हिंदी: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(No difference)
|
Latest revision as of 21:30, 2 November 2022
जिनके स्पर्शनादिक पञ्चेन्द्रिय के विषयभूत माला तथा स्त्री आदि विषयों की आकाङ्क्षा सम्बन्धी अधीनता नष्ट हो गई है अर्थात् जो पूर्णरूपेण इन्द्रिय-विजयी हैं। तथा जिन्होंने खेती आदि व्यापार का परित्याग कर दिया है और जो बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह से रहित हैं, तथा ज्ञान ध्यान और तप ही जिनके श्रेष्ठ रत्न हैं, उन्हीं में जो सदैव लीन रहते हैं वे तपस्वी-गुरु प्रशंसनीय होते हैं ।