रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 149 - अर्थ: Difference between revisions
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Latest revision as of 21:30, 2 November 2022
येन स्वयं वीतकलंकविद्या-दृष्टिक्रिया-रत्नकरण्डभावम्
नीतस्तमायाति-पतीच्छयेव, सर्वार्थसिद्धिस्त्रिषु-विष्टपेषु ॥149॥