रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 41 - अर्थ: Difference between revisions
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Latest revision as of 21:30, 2 November 2022
देवेन्द्रचक्रमहिमानममेयमानम्,
राजेन्द्रचक्रमवनीन्द्रशिरोर्चनीयम् ।
धर्मेन्द्रचक्रमधरीकृतसर्वलोकम्,
लब्ध्वा शिवं च जिनभक्तिरुपैति भव्यः ॥41॥