रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 56 - टीका हिंदी: Difference between revisions
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Latest revision as of 21:30, 2 November 2022
- परिवाद का अर्थ मिथ्योपदेश है अर्थात् अभ्युदय और मोक्ष की प्रयोजनभूत क्रियाओं में दूसरे को अन्यथा प्रवृत्ति कराना परिवाद या मिथ्योपदेश है ।
- स्त्री-पुरुषों की एकान्त में की हुई विशिष्ट क्रिया को प्रकट करना रहोभ्याख्यान है ।
- अंगविकार तथा भौंहों का चलाना आदि के द्वारा दूसरे के अभिप्राय को जानकर इर्षावश उसे प्रकट करना पैशुन्य है । इसे साकारमन्त्रभेद कहते हैं ।
- दूसरे के द्वारा अनुक्त अथवा अकृत किसी कार्य के विषय में ऐसे कहना कि यह उसने कहा है या किया है, इस प्रकार धोखा देने के अभिप्राय से कपटपूर्ण लेख लिखना कूटलेखकरण है ।
- तथा धरोहर रखनेवाला व्यक्ति यदि अपनी वस्तु की संख्या को भूलकर अल्पसंख्या में ही वस्तु को मांग रहा है तो कह देना हाँ, इतनी ही तुम्हारी वस्तु है, ले लो, इसे न्यासापहारिता कहते हैं ।