सादि: Difference between revisions
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<p class="SanskritText"><span class="GRef">क्षपणासार / मूल या टीका गाथा 610/725</span> खीणे घादिचउक्के णं तचउक्कस्स होदि उप्पत्ती। सादी अपज्जवसिदा उक्कस्साणंतपरिसंखा ॥610॥ </p> | |||
<p class="HindiText">= <b>प्रश्न</b> - (घातिया कर्मनि के चतुष्टय का नाश होतैं अनंतचतुष्टय की उत्पत्ति ही है। अनंतपन कैसे संभव है?) = <br> | |||
<b>उत्तर</b> - <b>सादि</b> कहिये उपजने काल विषै आदि सहित है तथापि अपर्यवसिता कहिए अवसान या अंत ताकरि रहित है तातै अनंत कहिये। अथवा अविभाग प्रतिच्छेदनि की अपेक्षा इनकी उत्कृष्ट अनंतानंत मात्र संख्या है तातै भी अनंत कहिये।</p><br> | |||
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Latest revision as of 14:34, 4 November 2022
देखें अनादि ।
क्षपणासार / मूल या टीका गाथा 610/725 खीणे घादिचउक्के णं तचउक्कस्स होदि उप्पत्ती। सादी अपज्जवसिदा उक्कस्साणंतपरिसंखा ॥610॥
= प्रश्न - (घातिया कर्मनि के चतुष्टय का नाश होतैं अनंतचतुष्टय की उत्पत्ति ही है। अनंतपन कैसे संभव है?) =
उत्तर - सादि कहिये उपजने काल विषै आदि सहित है तथापि अपर्यवसिता कहिए अवसान या अंत ताकरि रहित है तातै अनंत कहिये। अथवा अविभाग प्रतिच्छेदनि की अपेक्षा इनकी उत्कृष्ट अनंतानंत मात्र संख्या है तातै भी अनंत कहिये।