अर्थ पुरुषार्थ: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
No edit summary |
||
(11 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p> | <span class="HindiText"> जिसके द्वारा भौतिक सुख-समृद्धि की सिद्धि हो, वही अर्थ पुरुषार्थ है। </span> | ||
<p> <span class="GRef"> भगवती आराधना/1814/1628 </span><span class="PrakritText"> इहलोगियपरलोगियदोसे पुरिसस्स आवहइ णिच्चं। अत्थो अणत्थमूलं महाभयं मुत्तिपडिपंथो। 1814। </span> = <span class="HindiText"> इस लोक के दोष और परलोक के दोष '''अर्थ पुरुषार्थ''' से मनुष्य को भोगने पड़ते हैं। इसलिए अर्थ अनर्थ का कारण है, मोक्ष प्राप्ति के लिए यह अर्गला के समान है। 1814। </p> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ अर्थ पुनरुक्त | [[ अर्थ पुनरुक्त | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ अर्थ मल | [[ अर्थ मल | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: अ]] | [[Category: अ]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] | |||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Latest revision as of 08:18, 5 November 2022
जिसके द्वारा भौतिक सुख-समृद्धि की सिद्धि हो, वही अर्थ पुरुषार्थ है।
भगवती आराधना/1814/1628 इहलोगियपरलोगियदोसे पुरिसस्स आवहइ णिच्चं। अत्थो अणत्थमूलं महाभयं मुत्तिपडिपंथो। 1814। = इस लोक के दोष और परलोक के दोष अर्थ पुरुषार्थ से मनुष्य को भोगने पड़ते हैं। इसलिए अर्थ अनर्थ का कारण है, मोक्ष प्राप्ति के लिए यह अर्गला के समान है। 1814।