अग्रायणी: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(5 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef">धवला पुस्तक 1/1,1,2/115/1</span> <p class="PrakritText">अग्गेणियं णाम पुव्वं.....अंगाणगं वण्णेइ। </p> | |||
<p>= अग्र अर्थात् द्वादशांगों में प्रधानभूत वस्तु के अयन अर्थात् ज्ञान को अग्रायण कहते हैं, और उसका कथन करना जिसका प्रयोजन हो उसे अग्रायणी पूर्व कहते हैं।</p> | <p class="HindiText">= अग्र अर्थात् द्वादशांगों में प्रधानभूत वस्तु के अयन अर्थात् ज्ञान को अग्रायण कहते हैं, और उसका कथन करना जिसका प्रयोजन हो उसे अग्रायणी पूर्व कहते हैं।</p> | ||
< | <span class="GRef">धवला पुस्तक 9/1,1,2/123/6</span> <p class="PrakritText">अंगाणमग्गपदं वण्णेदि त्ति अग्गेणियं गुणणामं। </p> | ||
<p>= अंगों के अग्र अर्थात् प्रधानभूत पदार्थों का वर्णन करनेवाला होने के कारण `अग्रायणीय' यह गौण नाम है।</p> | <p class="HindiText">= अंगों के अग्र अर्थात् प्रधानभूत पदार्थों का वर्णन करनेवाला होने के कारण `अग्रायणीय' यह गौण नाम है।</p> | ||
< | <span class="GRef">धवला पुस्तक 1/4,1,45/226/7</span> <p class="SanskritText">अगानामग्रमेति गच्छति प्रतिपादयतीति गोण्णणाममग्गेणियं। </p> | ||
<p>= अंगों के अग्र अर्थात् प्रधान पदार्थ को वह प्राप्त होता है अर्थात् प्रतिपादन करता है अतः अग्रायणीय यह गौण नाम है।</p> | <p class="HindiText">= अंगों के अग्र अर्थात् प्रधान पदार्थ को वह प्राप्त होता है अर्थात् प्रतिपादन करता है अतः अग्रायणीय यह गौण नाम है।</p> | ||
<p>• श्रुतज्ञान का द्वितीय पूर्व – देखें [[ श्रुतज्ञान#III.1 | श्रुतज्ञान - III.1]]।</p> | <p class="HindiText">• श्रुतज्ञान का द्वितीय पूर्व – देखें [[ श्रुतज्ञान#III.1 | श्रुतज्ञान - III.1]]।</p> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ अग्रहोऽन्यथा | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ अग्रायणीयपूर्व | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: अ]] | [[Category: अ]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 17:18, 8 December 2022
धवला पुस्तक 1/1,1,2/115/1
अग्गेणियं णाम पुव्वं.....अंगाणगं वण्णेइ।
= अग्र अर्थात् द्वादशांगों में प्रधानभूत वस्तु के अयन अर्थात् ज्ञान को अग्रायण कहते हैं, और उसका कथन करना जिसका प्रयोजन हो उसे अग्रायणी पूर्व कहते हैं।
धवला पुस्तक 9/1,1,2/123/6
अंगाणमग्गपदं वण्णेदि त्ति अग्गेणियं गुणणामं।
= अंगों के अग्र अर्थात् प्रधानभूत पदार्थों का वर्णन करनेवाला होने के कारण `अग्रायणीय' यह गौण नाम है।
धवला पुस्तक 1/4,1,45/226/7
अगानामग्रमेति गच्छति प्रतिपादयतीति गोण्णणाममग्गेणियं।
= अंगों के अग्र अर्थात् प्रधान पदार्थ को वह प्राप्त होता है अर्थात् प्रतिपादन करता है अतः अग्रायणीय यह गौण नाम है।
• श्रुतज्ञान का द्वितीय पूर्व – देखें श्रुतज्ञान - III.1।